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पाठा के शेर और पूर्वान्चल के डॉन की कहानी एक, मुन्ना बजरंगी ददुआ को पहुंचाता था असलहों की खेप

locationकानपुरPublished: Jul 09, 2018 07:25:07 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

झांसी से बागपत पेशी के लाए गए माफिया डॉन की जेल में गोली मार कर हत्या, लखनऊ से लेकर जंगल दहला

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पाठा के शेर और पूर्वान्चल के डॉन की कहानी एक, मुन्ना बजरंगी ददुआ को पहुंचाता था असलहों की खेप

कानपुर। माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की सोमवार को बागबत जेल में गोली मार कर हत्या कर दी गई। डॉन के मर्डर के बाद पूर्वान्चल से लेकर पाठा के जंगल में यह खबर आग की तरह फैल गई। तीन दशक तक यूपी पुलिस के नाक में दम करने वाले डकैत ददुआ और माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी के बीच गहरी दोस्ती थी। आयाराम-गयाराम की दुनिया के अलावा सियायत में दोनों की तूती बोलती थी। ददुआ कभी मायावती का खास हुआ करता था तो डॉन की भी बसपा नेताओं से गहरी मित्रता थी। पर ददुआ ने हाथी का साथ छोड़ साइकिल का दामन थाम लिया तो पाटा के शेर व सुपारी किलर के बीच दरार पड़ गई। मुन्ना बजरंगी ने ददुआ का असलहे और गोला-बारूद देना बंद कर दिया और अपने एक खास गुर्गे के जरिए डकैत के पास पैगाम पहुंचाया। ददुआ के गुरू रहे पूर्व दस्यू गया पटेल उर्फ गया बाबा कहते हैं कि मुन्ना बजरंगी ददुआ के साथ ही बीहड़ में असलहे पहुंचाता था और बदले में उसे मुहंमागी कीमत भी मिलती थी। पर मुन्ना की सबसे ज्यादा गहरी दोस्ती ददुआ से थी। मुन्ना बजंरगी ही एक ऐसा अपराधी था जो ददुआ से मिला।
…तो दूसरे की बोलती थी तूती
पाठा के बेताब बादशाह रहे ददुआ की 52 गांवों सल्तनत चलती थी तो पूर्वान्चल से लेकर पूरे यूपी के अलावा देश के अन्य राज्यों में मुन्ना बजरंगी की तूती बोलती थी। एक डकैती, अपहरण, तेंदू पत्ता की वसूली करता तो दूसरा सुपारी किलर के साथ असलहों का सबसे बड़ा कारोबारी था। चुनाव के वक्त ददुआ का लेटर पैड जारी होता और जिसके नाम की मुहर डकैत लगा देता वही जनपतिनिधि बन जाता तो कुछ हद तक मुन्ना बजरंगी का भी सियासत में सीधा दखल था। ददुआ बसपा सुप्रीमो का खास रहा और इसके चुने गए बंदों को मायावती टिकट बेहिचक दे दिया करती थीं तो यही डॉन का था। उसकी पैठ बसपा के बड़े नेताओं से थी। पर 2003 में मुलायम सिंह के सीएम बनते ही ददुआ ने हाथी को छोड़ साइकिल का हैंडिल थाम लिया और 2004 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के जिताने का फरमान जारी कर दिया। जिस पर माफिया डॉन और ददुआ के बीच दरार पड़ गई और सत्ता बदलते ही मायावती ने डकैत का इनकाउंटर करा दिया।
नबालिग थे पर उठा लिए हथियार
मुन्ना बजरंगी का जन्म 1967 में जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव निवासी पारसनाथ सिंह के घर में हुआ था। पिता उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे। मगर, प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने उनके अरमानों को कुचल दिया। 17 साल की नाबालिग उम्र में ही उसके खिलाफ जौनपुर के सुरेही थाना में मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद मुन्ना ने कभी पलटकर नहीं देखा। वह जरायम के दलदल में धंसता चला गया। वहीं ददुआ का जन्म चित्रकूट जिले के देवकली गांव में 1949 में हुआ था। ददुआ पर पहला केस 16 साल की उम्र 1975 में (थाना रैपुरा) में मर्डर का दर्ज हुआ था। 1975 से लेकर 2007 तक इसके ऊपर 235 से ज्यादा लूट, मर्डर, नरसंहार, किडनैपिंग और वसूली के मामले दर्ज थे। 70 के दशक से अपराध की दुनिया में एक्टिव ददुआ बेहद क्रूर था। जनार्दन सिंह के सरेंडर के बाद 1982 में उसने अलग गैंग बनाया।
असहलों की पहुंचाता था खेप
पूर्व दस्यू गया पटेल बताते हैं कि मुख्तार अंसारी का बांदा, चित्रकूट, महोबा और जलौन जिलों में अच्छी पकड़ थी। जब पुलिस डकैतों को पकड़ने के लिए अभियान चलाती तो वो पाठा से निकल कर पूर्वान्चल में शरण ले लिया करते थे। इसी दौरान ददुआ के एक खास आदमी से मुन्ना की मुलाकात हुई। वो मुन्ना को लेकर पाठा के जंगल में गया और ददुआ से मिलवाया। मून्ना ने पैर छूकर ददुआ का आर्शीवाद लिया और फिर जंगल में असलहों की कमी उसने नहीं होने दी। आधुनिक हथियारों की खेप बेधड़क ददुआ के गैंग में पहुंच जाया करती थी। दोनों बसपा के नेताओं के सपंर्क में रहे और उनके संरक्षण के चलते राज किया। ददुआ के समाजवादी पार्टी में चले जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने ददुआ से दूरी बना ली और फिर कभी एक नहीं हुए।
इस कांड के बाद बना मोस्ट वॉन्टेड
पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के कारोबार पर मुख्तार अंसारी का कब्जा था। लेकिन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय उनके लिए चुनौती बनने लगे। कृष्णानंद राय का बढ़ता प्रभाव मुख्तार को रास नहीं आ रहा था। मुख्तार ने कृष्णानंद राय को खत्म करने की जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को सौंप दी। फरमान मिल जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने गाजीपुर के भंवरकौल थाना क्षेत्र के गंधौर में 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत की नींद सुला दिया। उसने अपने साथियों के साथ मिलकर कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर असाल्ट रायफल से 400 गोलियां बरसाई थी। हमले में विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे छह अन्य लोग भी मारे गए थे। पोस्टमार्टम के दौरान हर मृतक के शरीर से 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थी। इसके बाद से वह मोस्ट वॉन्टेड बन गया था।

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