42 कोटेदार पकड़े गए
सरकार ने राशन की कालाबाजारी पर लगाम लगाने के लिए ई-पॉश (इलेक्ट्रानिक प्वाइंट ऑफ सेल) जैसी आधुनिक व्यवस्था शुरू की लेकिन गरीबों का हक डकारने की आदत डाल चुके कोटेदारों ने इस व्यवस्था में भी सेंध लगा दी। शासन ने जांच की तो जिले के साथ ही प्रदेश के 43 जनपदों में गरीब जनता का राशन खाने वाले कोटेदारों का पर्दाफाश होता चला गया। इस मामले की जानकारी होने पर डीएम विजय विश्वा सपंत ने गोपनीय तरीके से जांच करवाई ने गरीबों की रोटी खाने वालों के नाम सामने आए। डीएम ने नगर के 42 कोटेदारों के खिलाफ खाद्य वस्तु अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करा अन्य की जांच के आदेश दिए हैं। डीएम के इस कार्रवाई से कोटेदारों में हड़कंप मचा हुआ है। शहर में करीब पंद्रह सौ सरकारी राशन की दुकानें हैं। जिनकी जांच कई टीमें कर रही हैं।
कुछ इस तरह से किया घोटाला
राशन वितरण के लिए एनआइसी उप्र के माध्यम से यूआइडीएआइ की आधार बायोमीट्रिक ऑथेन्टिकेशन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसमे उपभोक्ताओं के आधार का डाटा फीड होता है। ई-पॉश मशीन पर उपभोक्ता जैसे ही अपने थंब का इंप्रेशन देता है, डाटा मैच करते ही कोटेदार उसे सही उपभोक्ता मानकर राशन वितरित करते हैं। मिलान न होने पर राशन नहीं दिया जाता है। अधिकारियों ने एनआइसी के डाटा खंगाले तो कई ऐसे राशन कार्ड मिले जिन पर राशन वितरण कई महीनों से नहीं हुआ था। जब इनका डाटा निकाला गया तो जानकारी हुई कि एनआइसी के डाटा से छेड़छाड़ की गई है। इसी के बाद जांच अधिकारियो ंने आगे पड़ताल की तो एक-एक कर घोटालेबाजों की करतूत बाहर आती रही।
ऐसे घोटाले को दिया अंजाम
कोटेदारों ने वितरण के समय वास्तविक उपभोक्ता का आधार नंबर एडिट (संशोधित) कर अपने जानकार किसी व्यक्ति का आधार नंबर एड (जोड़) कर दिया। राशन वितरण के बाद कोटेदार ने यह प्रक्रिया फिर की और अपने जानने वाले उपभोक्ता का आधार नंबर एडिट कर वास्तविक उपभोक्ता का आधार नंबर एड कर दिया। चूंकि सिस्टम ऑनलाइन है इसलिए खेल अधिकारियों की पकड़ में आ गया। वहीं लोगों की मानें तो इस घोटाले में जिला आपूर्ति विभाग के अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं और बिना उनकी मदद से कोटेदार इतना बड़ा जालसाजी नहीं कर सकते। साफ्टवेयर इंजीनियर विपलव त्रिपाठी बताते हैं कि जिस तरह से इस घोटाले को अंजाम दिया गया, उसके पीछे जानकारी व्यक्तियों का हाथ हो सकता है। कम्प्यूटर के जानकारों को कोटेदारों ने मिला कर पूरे घोटला किया होगा।
खाद्य़ सुरक्षा ने कर दिया मालामाल
गरीब परिवारों को केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना का आगाज किया। हर माह यूपी के सैकड़ों गरीबों के लिए गेहूं और चावल सरकारी राशन की दुकानों से वितरित किया जा रहा है। पर जमीनी हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है। गरीबों के लिए आनो वाला 60 से 70 फसदी राशन सरकारी गोदामों से सीधे व्यापारियों के घरों में जा रहे है। कुछ कोटेदार इमानदारी से काम करना चाहते हैं, पर सरकारी बाबुओं के चलते वो ऐसा कर पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। एक कोटेदार ने बताया कि वितरण व स्टॉक चेक के नाम पर आने वाले कर्मचारी मुंहमांगी रकम वसूलते हैं। आपूर्ति बाबू व इंस्पेक्टर कागजी कार्रवाई के अलावा निरीक्षण के नाम पर पैसा मांगते हैं। नहीं देने पर दुकान का लाइसेंस निलंबित करने की धमकी देते हैं।
आपूर्ति विभाग बना घोटाले की वजह
फतेहपुर, और घाटमपुर में राशन माफिया और आपूर्ति विभाग की मिलीभगत से कालाबाजारी जोरों पर चल रही है। गोदामों से खुलेआम गरीबों का राशन माफिया अपने वाहनों के जरिए घरों पर ले जाते हैं। जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र में अधिकतर सरकारी गोदामों में माफियाओं का राज है। यहां पर बकाएदा आपूर्ति विभाग के बाबू व इंस्पेक्टर के रेट भी फिक्स हैं। एक कोटेदार ने बताया कि इंस्पेक्टर जांच के नाम पर हमारी दुकान में आ गया। कमीं बताकर मुकदमा के साथ निलंबन की बात करने लगा। हमने उनसे इसका कारण पूछा तो वो आग बबूला हो गया और दुकान को निलंबित कर दिया। कोटेदार ने बताया कि बाबू और इंस्पेक्टर एक ड्रेप केरोसिन के नाम पर पांच रूप्ए तो एक बोरा गेहूं व चावल के एवज में सौ रूप्ए कोटेदारों से उगाही करते हैं। इसी के चलते यूपी में कालाबाजारी जारी है। सरकार इनकी जांच कराए तो कई अफसर सलाखों के पीछे होंगे।