84 के दंगों ने परिवार को तोड़ दिया था चौंतीस साल पहले की बात है। गोविंद नगर की पंजाब एंड सिंध बैंक में बतौर प्रबंधक तैनात सरदार अमरीक सिंह कमल बर्रा इलाके में रहते थे। वर्ष1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भडक़े सिख विरोधी दंगे के दौरान दंगाइयों ने अमरीक के छोटे बेटे को मार डाला, जबकि बड़े बेटे देवेंद्र को भी तीन गोलियां मारी गई थीं। इसके बाद पूरा परिवार लुधियाना चला गया। वर्ष 2000 में देवेंद्र सिंह न्यूयॉर्क चले गए। देवेंद्र का लुधियाना में विवाह हुआ, यहीं अंशदीप का जन्म हुआ।
इकलौते सिख हैं, जो ट्रंप के सुरक्षा दस्ते में तैनात हैं जवान होने के बाद अंशदीप ने बतौर सिक्योरिटी मैनेजर कॅरियर बनाना चाहा। अब अमेरिका में उसके सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि राष्ट्रपति के सुरक्षा गार्डों में शामिल होने के लिए सामान्य वेशभूषा होनी चाहिए। सरकार होने के नाते धार्मिक पहचान को हटाने के लिए जब कुछ शर्तें लगाई गईं तो अंशदीप ने वहां की अदालत का दरवाजा खटखटाया और फैसला अंशदीप के पक्ष में रहा। अंशदीप के दूसरे दादा कंवलजीत सिंह भाटिया ने बताया कि अंशदीप ने पहले एयरपोर्ट सिक्योरिटी में नौकरी की। ट्रेनिंग पूरी की तो इसी सप्ताह अमेरिका में हुए एक समारोह में उसे राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए तैनात गार्ड फ्लीट में शामिल कर लिया गया। वह पहले सिख हैं जो पूरी शिनाख्त के साथ सुरक्षा फ्लीट में शामिल किए गए।
सिख समुदाय अंशदीप की सफलता से गदगद दादा कंवलजीत बताते हैं कि देवेंद्र वर्ष 2017 में अमेरिका से मुआवजे के प्रकरण में आए थे। काफी प्रयास किया गया लेकिन बात नहीं बनी। देवेंद्र के पास समय कम था और यहां बार-बार कागजातों की जरूरत पड़ रही थी। गुरुद्वारा भाई बन्नो साहिब के महासचिव सरदार अजीत सिंह भाटिया ने बताया कि पूरा भाटिया परिवार ही नहीं बल्कि सिख समुदाय को अंशदीप पर नाज है। उसके अंदर प्रतिभा थी जो निखरकर सामने आई। एक भारतीय मूल का नागरिक अमेरिका में ऊंचे पद पर पहुंचा जो हम सभी के लिए गौरव की बात है।