चार अक्टूबर 2016 को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मेट्रो की नींव रखी थी. इसके तहत पॉलिटेक्निक में मेट्रो यार्ड का शिलान्यास किया था. सपा सरकार में 13721 करोड़ का मेट्रो प्रोजेक्ट तैयार हुआ था. भाजपा सरकार ने फिर प्रोजेक्ट में बदलाव करते हुए पीपीपी मॉडल से बनाने के साथ ही आय के स्त्रोत पर भी जोर दिया गया. इसके आधार पर जनवरी 2018 में 18342 करोड़ रुपये का डीपीआर बना.
इसके तहत आईआईटी से मोतीझील तक 734 करोड़ के तहत 25 अप्रैल को टेंडर कराए गए. दो कंपनियों आई, लेकिन पांच माह से फाइल बंद पड़ी है. इसी बीच फिर तय हुआ कि सरकारी माध्यम से मेट्रो का निर्माण कराया जाएगा. इसके चलते अफसर भी फंसे हुए हैं कि कैसे निर्माण होगा. फिलहाल मेट्रो के लेकर केंद्र व प्रदेश सरकार भी शांत है. अभी तक कोई फैसला नहीं आया है और न ही काम शुरू हो रहा है. लखनऊ मेट्रो कारपोरेशन को निर्माण की अभी फिलहाल जिम्मदारी दी गई है. धन न होने के कारण यार्ड का काम धीमा पड़ा है. लोकसभा 2019 के चुनाव भी करीब आ रहे हैं. अब देखना यह है कि कब मेट्रो यार्ड से बाहर आती है और मेट्रो की लाइन डालने के लिए कब से काम शुरू होता है.