हैलट के जूनियर डॉक्टरों के लिए अस्पताल में कोई व्यवस्थाएं नहीं हैं। न उनके लिए पीने का साफ पानी है और न ही टॉयलेट। वे मरीजों का टॉयलेट इस्तेमाल कर रहे हैं। कई-कई घंटे बिना रुके काम करने से उनकी सेहत बिगडऩे लगी है। उनके अंदर भरा गुस्सा मरीजों से बातचीत के दौरान साफ झलकता है। यह गुस्सा मरीजों के लिए नहीं बल्कि अस्पताल की व्यवस्थाओं के लिए है।
जूनियर डॉक्टरों के कमरे बुरी हालत में हैं, जहां आराम करना तो दूर वे बैठना भी नहीं चाहते। इसलिए वार्डों में ही वक्त काटते हैं। कमरों में न पंखे हैं और न ही सफाई। हालांकि जूनियर डॉक्टरों की शिकायत पर प्राचार्य डॉ. आरती लालचंदानी से स्थितियां सुधारने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि कमरों में सफाई कराकर सारी व्यवस्थाएं सही कराई जाएं।
वार्डों में सारा काम जूनियर डॉक्टर ही संभाल रहे हैं। रेजीडेंट अपना भी काम जूनियर डॉक्टरों के जिम्मे सौंप देते हैं। इसके बावजूद रेजीडेंट जूनियर डॉक्टरों से ढंग से बात तक नहीं करते। सख्ती बरतते रहते हैं। इसे देखते हुए सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. संजय काला ने रेजीडेंट डॉक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे जूनियर डॉक्टरों के साथ नरमी से पेश आएं।
जूनियर डॉक्टरों पर काम का अधिक लोड न पड़े, इसलिए उनके काम का रोस्टर तैयार किया गया है। इस रोस्टर में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया गया है। जिसके मुताबिक हर जूनियर डॉक्टर सप्ताह में सिर्फ ४८ घंटे ही काम करेगा। इसके अलावा १२ घंटे की उसकी इमरजेंसी ड्यूटी रहेगी। जो जूनियर डॉक्टर रात की शिफ्ट करेगा, उसे दिन में आराम दिया जाएगा।