फिलहाल कुछ भी हो, उसकी मृत्यु के बाद गंगा में प्रवाह कर देने के बाद उस बेटे के छै वर्ष बाद लौटने पर मां गीता के लिए उस दिन से प्रत्येक दिन दीवाली है। वह उसके ही इर्द गिर्द घूम रही है कि शायद मेरे शीलू को मेरा बचपन का प्यार याद आ जाये कि माँ कैसे खिलाती थी और लोरी सुनाकर सुलाती थी। खैर गीता की खुशी का ठिकाना नही है। बात हो रही कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र के लुधौरा गांव की, जहां जन्मा शीलू का सर्पदंश से मौत के बाद जल प्रवाह कर दिया गया था। वहीं तंत्र मंत्र से जीवित होने के बाद वह कन्नौज के बिनोरा रामपुर में सपेरों के एक परिवार ने उसका अपने बेटे की तरह 7 साल तक पालन पोषण किया। आज वह परिजनों की मसक्कत के बाद वापस अपने पैतृक घर आ गया है, लेकिन देखा जाए तो यशोदा की तरह पालन पोषण करने वाली उस मां सोनाश्री पर क्या बीत रही होगी, ये सिर्फ वह मां ही जान सकती है।
हालांकि इधर शीलू के बाद मां गीता ने अपनी बेटियों की खुशी के लिए अपनी ननद संतोष निवासी बऊअन की मड़ैया मंगलपुर के बेटे मुनेंद्र को गोद ले लिया था। हालात अब ये गयी कि पालन पोषण करने वाली एक मां सोनाश्री की गोद पहले की तरह फिर खाली हो गयी और इधर गोद उजड़ने का दंश झेल रही मां गीता को उसका बेटा जीवित मिलने से उसकी गोद फिर भर गई। ईश्वर की इस लीला को न तो ये दोनों परिवार समझ पा रहे है और न ही दोनों जनपद के लोगों की समझ मे आ रहा है। फिलहाल दोनों परिवारों में अपार खुशियां आंगन को रोशन कर रही हैं।