सीएसए सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार करीब 800 क्विंटल जनक बीज अभी भी गोदाम में बिना पैकिंग के पड़ा हुआ है, लेकिन किसानों को यह बीज नहीं दिया जा रहा है. आधारी बीज थोड़ा बहुत किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है. आधारी बीज व जनक बीज के बीच दोगुने मूल्य का अंतर है. आधारी बीज करीब 35 रुपए केजी है. वहीं जनक बीज की कीमत करीब 65 रुपए प्रति किलोग्राम है. जनक बीज न बेचकर सीएसए को आर्थिक क्षति भी पहुंचाई गई है. दलहन व तिलहन फसलों का बीज भी डंप हो गया है. करीब 30 क्विंटल राई का बीज भी डंप हो गया है जो कि अब नीलामी में जाएगा.
सारा खेल सीएसए के एक अधिकारी की वजह से बताया गया है. वह जूट की पैकिंग की आपूर्ति करने वाली एक कंपनी को टेंडर दिलवाने का आश्वासन दे चुका था. टेंडर प्रक्रिया में चार कंपनियां शामिल हुईं, जिसमें से दो बोगस थीं. एक कंपनी सही थी, लेकिन उसका वजन कम था. इस वजह से उसे आउट कर दिया गया. आखिरी कंपनी नॉर्म्स पर खरी नहीं उतर रही थी, लेकिन अधिकारी की पसंदीदा कंपनी होने के चलते उसी को टेंडर देने का प्लान किया गया. वहीं एन मौके पर कहीं सप्लाई न करने की वजह से इस कंपनी का भी टेंडर फंस गया. इसी दौरान पैकिंग मैटेरियल के लिए शासन से इजाजत लेकर पालीथीन पर भी ग्रीन सिग्नल लिया गया. बीज प्रक्षेत्र डायरेक्टर को पैकिंग मैटीरियल एक महीने पहले दे भी दिया गया था.
पसंदीदा कंपनी को आर्डर न मिलने से नाराज अधिकारी ने पैकिंग मैटीरियल मिलने के बाद दवा शोधन का पेंच फंसा दिया. इससे एक बार फिर बीज पैकिंग का मामला लटक गया. वहीं डायरेक्टर बीज प्रक्षेत्र के पास 50 हजार कीमत की दवा खरीदने की पॉवर होती है, लेकिन उन्होंने अपनी पॉवर का इस्तेमाल नहीं किया. जब मामला वीसी के पास पहुंचा तो उन्होंने डायरेक्टर से दवा न खरीदने की वजह पूछी. इसपर पर चुप्पी साध गए. हालांकि बाद में उन्होंने दवा खरीदी. इस दौरान सीएसए को आर्थिक क्षति और किसानों को आर्थिक व मानसिक क्षति हुई.