सीएसए यह प्रजाति अगस्त में लांच करेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस अलसी को रोजमर्रा भोजन व ड्राई बिस्कुट, बेकरी के उत्पादों में इस्तेमाल कर सकते हैं। अभी तक अलसी की जो भी प्रजाति मिल रही है, उसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा काफी कम है और ओमेगा-3 फैटी एसिड का जीवन बचाने में अहम रोल है। नई प्रजाति में ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने की क्षमता, दिल की धमनियों में कोलेस्ट्राल के जमाव को रोकने और असामान्य दिल की धड़कन को संतुलित करने, बारीक नसों खासतौर से ब्रेन के न्यूरान को स्ट्रांग करने की क्षमता होती है। इसमें ब्रेन स्ट्रोक की संभावना घटती है। हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को अतिरिक्त मात्रा में दूसरे स्रोतों से ओमेगा- 3 फैटी एसिड की मात्रा दी जाती है।
सीएसए विवि के निदेशक शोध डॉ. एचजी प्रकाश का कहना है कि अलसी की नई प्रजातियों को विकसित करने में सीएसए का रिकॉर्ड है। विकसित नई प्रजाति में ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा बढ़ाने में कामयाबी मिली है। जल्द ही किसानों को दी जाएगी। इस प्रजाति का उत्पादन बुन्दलेखंड में बेहतर पाया गया है।
सभी लोगों को ओमेगा -3 फैटी एसिड की अधिकता वाली चीजें खानी चाहिए ताकि दिल के गम्भीर रोगों और ब्रेन स्ट्रोक से बच सकें। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. उमेश्वर पाण्डेय का कहना है कि अखरोट, बादाम भी इसके स्रोत हैं। सोयाबीन तेल में भी इसकी मात्रा मिलती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) ने प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम दो बार मछली सैल्मन, मैकेरल, हेरिंग, सार्डिन, लेक ट्राउट और ट्यूना खाने की सिफारिश की है।
अब हार्टअटैक और ब्रेन स्ट्रोक ज्यादा उम्र वालों को ही नहीं बल्कि युवाओं को भी चपेट में ले रहा है। लगभग २५ प्रतिशत रोगी तो ३५ साल के कम होते हैँ, जबकि २५ से ३० साल के बीच पंाच और २५ साल से कम उम्र के तीन प्रतिशत लोगों में यह बीमारी मिल रही है। डॉ. उमेश्वर पाण्डेय के मुताबिक युवा दिल के रोगी हो रहे हैं। जंक फूड, चेयर वर्क और मोबाइल, कम्प्यूटर उनकी सेहत बिगाड़ रहे हैं। बायोलॉजिकल क्लॉक बदल रहा है। इसलिए उनकी डाइट में ऐसी चीजें शामिल जानी चाहिए जो दिल के रोगों की टेंडेंसी कम करे।