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लोहिया के गढ़ पर बीजेपी की नजर,अखिलेश को हराएंगे ये लीडर

locationकानपुरPublished: Nov 02, 2018 02:32:28 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

लोहिया के बाद मुलायम को मिली थी विरासत, बेटे-बहू को जनता ने बनाया सांसद, बीजेपी ने मुलायम के गढ़ पर झोंकी ताकत, कानपुर-बुंदेलखंड परिक्षेत्र के तीन जिलों में बदल दिए जिलाध्यक्ष

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लोहिया के गढ़ पर बीजेपी की नजर,अखिलेश को हराएंगे ये लीडर

कानपुर। लोकसभा चुनाव का शंखदान हो चुका है। सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। मिशन 73 प्लस को कामयाब बनाने के लिए बीजेपी भी अंदरखाने तैयारी कर रही है और कानपुर-बुंदेलखंड की 10 में 10 सीटों पर कमल खिलाने के लिए रणनीति बना रही है। 2014 के चुनाव में अमित शाह की टीम ने कन्नौज में डिम्पल यादव को हराने के लिए चक्रव्यूह रचा था, लेकिन लोहिया की सीट पर वो कमल नहीं खिला पाए थे। इसी के चलते 2019 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की नजर लग चुकी है और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने यहां की जिम्मेदारी आनंद सिंह को सौंपी है। साथ ही सुब्रत पाठक, मंत्री अर्चना पांडेय और अपना दल एस के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल को भी सपा सुपीमो का पटखनी देने के लिए लगाया गया है।

तीन जिलों के बदले जिलाध्यक्ष
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कानपुर-बुंदेलखंड परिक्षेत्र के तीन जिलाध्यक्ष बदल दिए। इनमें से फर्रूखाबाद की जिम्मेदारी भूदेव राजपूत, कन्नौज आनंद सिंह और जालौन की बागडोर नागेंद्र गुप्ता को दी गई है। तीनों युवा चेहरे हैं और इनकी अपने-अपने जिलों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। लेकिन कन्नौज में आनंद सिंह को कुर्सी सौपने के पीछे बीजेपी की अहम चाल है। वो 2019 में यहां पर अखिलेश यादव को हराने के लिए इन पर दांव लगाया है। क्षत्रीय समाज का करीब डेढ़ लाख वोटर्स जीत-हार में अहम रोल अदा करता आ रहा है। 2014 में कन्नौज सीट से डिम्पल यादव चुनाव जीती थीं। उन्होंने बीजपी के सुब्रत राय को महज 20 हजार वोटों से हराया था। बीजवी भलीभांति जानती है कि यदि शिवपाल यादव ने यहां से मुस्लिम चेहरे को उतार दिया तो सपा सुप्रीमो का खेल बिगाड़ा जा सकता है।

शिवपाल भी बढ़ा सकते हैं मुश्किलें
कन्रौज समाजवादी पार्टी की प्रमुख सीट है। इस सीट से पहले सांसद डॉक्टर राममनोहर लोहिया बने थे, जिनकी विचारधारा पर चलने का दावा समाजवादी पार्टी करती है। इस सीट से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव भी सांसद रह चुके हैं। वर्तमान में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव यहां से सांसद हैं। 1996 से लगातार यहां सपा का झंडा ही लहरा रहा है। पूर्व जिलाध्यक्ष नरेंद्र राजपूत ने कहा कि समाजवादी कार्यकर्ता अब दो फाड़ हो गए हैं। ऐसे में अब कोई गठबंधन यहां काम नहीं करेगा। शिवपाल यादव यहां से मुस्लिम चेहरे पर दांव लगा सकते हैं और अंदखाने इसकी पूरी तैयारी भी मार्चे के पदाधिकारी कर चुके हैं। कन्नौज की तीन विधानसभा सीटो में से दो सीटे भाजपा के पास है और एक सीट सपा के पास है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 10 लोकसभा सीटों में से 09 सीटो पर भाजपा को जीत मिली थी। सिर्फ कन्नौज की सीट ही हाथ से फिसल गई थी।

26 साल की उम्र में चुने गए सांसद
महज 26 साल की उम्र में अखिलेश यादव पहली बार वर्ष 2000 में कन्नौज से सांसद चुने गए। 2004 में हुए आम चुनाव में वह दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए। सांसद के रूप में हैट्रिक लगाते हुए 2009 में हुए आम चुनाव में उन्होंने एक बार फिर जीत दर्ज की। उनके सियासी जीवन में मोड़ तब आया जब 2012 में उन्हें उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का नेता चुना गया। इसी साल प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली और इसका श्रेय अखिलेश को गया। 15 मार्च, 2012 को अखिलेश ने सिर्फ 38 साल की उम्र में राज्य के 20वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। तीन मई, 2012 को उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव के दौरान डिम्पल यादप सांसद चुनी गई। अगर जातिगत आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यहां पर करीब साढ़े तीन लाख यादव, दो लाख मुस्लिम, पौनें दो लाख्स दलित, डेढ़ लाख पटेल और इतने ही क्षत्रीय वोटर्स हैं। जो पिछले कई दशक से सपा के साथ मजबूती के साथ खड़े दिखे।

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