हत्या का लगाया था आरोप
अधिवक्ता अखिलेश सिंह ने बताया कि राकेश उर्फ कन्हैया कानपुर के काकादेव मोहल्ले में एक झोपड़ी में रहता था और पेट पालने के लिए रिक्शा चलाता था। 12 मार्च 1995 को हरदोई के सैफुद्दीन निवासी सुरेश का शव पनकी थाना क्षेत्र में मिला था। सुरेश भी रिक्शा चलाता था और कानपुर में परमपुरवा में रहता था। पुलिस राकेश को आरोपी बनाते हुए हत्या का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया था। करीब तीन माह बाद उसे जमानत मिल गयी और 37 माह पूर्व उसकी जमानत कट गयी। जिससे लगातार 37 माह से वह जेल में बंद था। इस दौरान एडीजे अष्टम सुंदरलाल की कोर्ट में केस की सुनवाई होती रही और आज गुरुवार को फैसला आ सका। जिसमें उसे बाइज्जत बरी किया गया।
चाची को पुलिस ने बनाया गवाह
अधिवक्ता ने बताया कि पुलिस ने गवाह मृतक सुरेश की चाची कांती देवी को बनाया था, जिसमें कहा गया था कि कांती देवी ने देखा था कि राकेश सुरेश को लेकर गया था। कोर्ट में जब दो कैदियों के बीच राकेश की पहचान कराई गयी तो कांती देवी राकेश को पहचान नहीं सकी। जिसके चलते उसे रिहा करने के कोर्ट ने आदेश दे दिये। शासकीय अधिवक्ता दिनेश अग्रवाल ने बताया कि कोर्ट से परवाना जा चुका है औरं राकेश जेल से रिहा हो सकेगा।
जवान से हो गया बुजुर्ग
जेल में 36 माह रहने के बाद कन्यैया जब बाहर आया तो उसके आंख में आंसू थे। उसने न्यायालय पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन पुलिस पर जरूर सवाल उठाए। कन्हैया ने बताया कि वो निर्दोष था, लेकिन थानेदार ने उसे जबरन झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भेजा था। मैंने थानेदार के पैर पकड़े, बुजुर्ग माता-पिता की दुहाई दी, पर उसे तरस नहीं आया। अपने कंधे पर मेडल के चलते उसने मुझे आरोपी बना जेल भेज दिया। जब मैं जेल गया था तब जवान था, लेकिन बाहर आने के बाद बुजुर्ग हो गया हूं।