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छत्तीसगढ़ का एक गांव जो बनता जा रहा है कुपोषण का गढ़, नहीं पहुंच रही सरकारी योजनाएं

locationकांकेरPublished: Nov 18, 2018 03:03:16 pm

Submitted by:

Deepak Sahu

तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी दावों की हकीकत कागजों में दम तोड़ती नजर आ रही है।

Malnutrition

छत्तीसगढ़ का एक गांव जो बनता जा रहा है कुपोषण का गढ़, नहीं पहुंच रही सरकारी योजनाएं

पखांजूर. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अंतर्गत आने वाले कोयलीबेड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत माचपल्ली के गांव आक्षीत व परियाहुर जैसे ग्रामीण अंचलों के रहवासी कुपोषण की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि कोयलीबेड़ा क्षेत्र कुपोषण का गढ़ बनता जा रहा है। तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी दावों की हकीकत कागजों में दम तोड़ती नजर आ रही है। क्षेत्र के कई इलाकों में स्वास्थ्य योजनाओं का बुरा हाल है। वहीं मितानिनों का दूर-दूर तक अता-पता नहीं है।

क्षेत्र में निवासरत बच्चों का पेट फूलते जा रहा है, जबकि उनके हाथ-पांव पतले होते जा रहे हैं। इससे देखकर समझ में आता है कि ये बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण की चपेट में हैं तथा उन्हें जल्द ही मदद की जरूरत है। हालांकि सरकार ने आदिवासियों के लिए बुनियादी सुविधाओं का प्रावधान किया है। उसके बाद भी कई ग्रामीणों से बात करके पता चलता है कि ये लोग सरकारी योजनाओं से वंचित हैं।

लोगों का कहना है कि कि बीते दो वर्षों से उनके बच्चे कुपोषण का दंश झेलने मजबूर हैं और जनता की चुनी हुई सरकार ही पालन-पोषण करें और बेहतर इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित कराए, लेकिन जिम्मेदारी से बचने के कारण इलाज की सुविधा मयस्सर नहीं हो पा रही है। दरअसल आदिवासी बाहुल्य इलाकों में कुपोषण को बढऩे और उस पर काबू पाने के कारणों को खत्म करने या कम करने के उपायों पर जोर नहीं दिया जा रहा है।

केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण मिटाने के लिए पोषण पुनर्वास योजना सहित तमाम प्रयास करने के दावे किए जा रहें है। बावजूद इसके कुपोषण को रोकने स्थानीय प्रशासन नाकाम साबित होता दिख रहा है। बच्चों और महिलाओं में कुपोषण एक संवेदनशील मुद्दा है, लेकिन कुपोषण से जंग लडऩे के सरकारी प्रयास कागजों पर कितने भी शानदार दिखते हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।

पखांजूर के अधिकारी पुष्पलता नायक ने बताया कि इस संबंध में जानकारी मिली है, जिसके बाद कार्यकर्ता द्वारा कुपोषितों को लाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन जागरूकता के अभाव में वे नहीं आ रहे हैं।

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