प्रदेश की जीवन दायिनी कही जाने वाली महानदी को छग. में एक पवित्र नदी में पहचान है। पांच जून को इस नदी को बचाने के लिए प्रदेशभर में पर्यावरण दिवस पर लाखों लोग संकल्प लेते हैं। केंद्र और राज्य की ओर से नदियों में साफ-सफाई अभियान चलाया जा रहा है। जल संरक्षण का संकल्प भी महानदी से छग में लोग लेते हैं। जिला मुख्यालय से महज ८ किमी दूर ग्राम सरंगपाल महनदी में अब मेडिकल अपशिष्टों को खुलेआम दबाया जा रहा है।
जबकि शासन की ओर से शख्त निर्देश है कि निजी और सरकारी अस्पतालों से निकलने वाले अपशिष्टों को इंसीनेटर के माध्यम से नष्ट किया जाना अनिवार्य है। छग. नर्सिंग होम एक्ट के आधार पर निजी और अस्पतालों से निकल रहे मेडिकल अपशिष्टों को खुले में नहीं फेंका जाना है। जबकि कांकेर जिले के निजी और सरकारी अस्पतालों में इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है।
जिला अस्पताल में १५ लाख के बजट से वर्षों पहले एक इंसीनेटर को बनाया गया है। अस्पताल प्रबंधन ने नियम निर्देश को ठेंगा दिखाकर तैयार किया तो पर्यावरण विभाग ने उपयोग पर रोक लगा दी। वर्षों बाद भी न तो जिला अस्पताल का दूसरा इंसीनेटर तैयार किया न ही अफसरों ने पहल की। रही बात निजी अस्पतालों की स्वास्थ्य विभाग ने 25-25 के दो अस्पतालों के लाइसेंस जारी कर दिया। जिला अस्पताल के सेटअप के आधार पर भानुप्रतापपुर में 100बिस्तर गौतम अस्पताल को मान्यता तो दे दिया गया लेकिन इंसीनरेटर यहां भी नहीं बनाया गया।
इसी तरह से वंदना और अन्य निजी अस्पताल संचालित हो रहे लेकिन कहीं पर भी मेडिकल अपशिष्ट के निपटान के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं किया गया है। अब ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा कि क्या स्वास्थ्य विभाग के संरक्षण में बिना मानक अस्पतालों को धड़ल्ले से लाइसेंस जारी कर दिया गया। महानदी में गड्ढा, खोदकर दबाए मेडिकल वेस्ट ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की पोल खोल दी है। जबकि मेडिकल अपशिष्ट को को बाहर नहीं फेंका जा सकता है।