छायावाद को बताया था शक्ति का काव्य
मुझे गर्व और गौरव का अनुभव होता है जब मैं यह कहता हूं कि मैं नामवर
सिंह का प्रथम शोधार्थी शिष्य था। जब वे जोधपुर में थे तब मैंने उनके निर्देशन में पीएचडी की। उनकी खास बात यह थी कि वे साहित्य को नई दृष्टि से देखते थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में पुनर्जागरण, आधुनिकता, नवजागरण को लेकर कार्य किया। हिंदी आलोचना के क्षेत्र में वह एक दिग्गज थे। उन्होंने अपभ्रंश साहित्य से लगाकर कविता के नए प्रतिमान जैसी किताबें लिखी। नामवर के जाने से बहुत बड़ा शून्य हिंदी आलोचना के क्षेत्र में व्याप्त हो गया। उनकी बोलने की क्षमता और कला बड़ी गजब की थी।
मुझे गर्व और गौरव का अनुभव होता है जब मैं यह कहता हूं कि मैं नामवर
सिंह का प्रथम शोधार्थी शिष्य था। जब वे जोधपुर में थे तब मैंने उनके निर्देशन में पीएचडी की। उनकी खास बात यह थी कि वे साहित्य को नई दृष्टि से देखते थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में पुनर्जागरण, आधुनिकता, नवजागरण को लेकर कार्य किया। हिंदी आलोचना के क्षेत्र में वह एक दिग्गज थे। उन्होंने अपभ्रंश साहित्य से लगाकर कविता के नए प्रतिमान जैसी किताबें लिखी। नामवर के जाने से बहुत बड़ा शून्य हिंदी आलोचना के क्षेत्र में व्याप्त हो गया। उनकी बोलने की क्षमता और कला बड़ी गजब की थी।
हिंदी साहित्य का 1200 वर्षों का इतिहास उनकी आंखों के आगे था। जब छायावाद पर आरोप लगाया जा रहा था कि यह पलायनवादी साहित्य है, तो वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि यह शक्ति का काव्य है। नई कविता एवं समकालीन कविता पर भी उन्होंने बेहतरीन कार्य कर दिखाया। वे अपने विद्यार्थी का पूरा ख्याल करते थे। रिसर्च के दौरान वे बड़े ही आत्मीयता एवं सहज भाव से मिलते थे। यदि वह कहीं बाहर भी जाते जहां कुछ अच्छी पुस्तकें होती तो वे
मेरे लिए अवश्य लेकर आते और मुझे पढऩे के लिए कहते थे।
डॉ. रमाकांत शर्मा, कवि, आलोचक एवं नामवर सिंह के शिष्य
मेरे लिए अवश्य लेकर आते और मुझे पढऩे के लिए कहते थे।
डॉ. रमाकांत शर्मा, कवि, आलोचक एवं नामवर सिंह के शिष्य
उनके व्याख्यानों में अज्ञेय जैसे विद्वानों को बैठे देखा नामवर सिंह जब जोधपुर विश्वविद्यालय में आए थे, उस समय मैं बीए का छात्र था। यह मेरा सौभाग्य था कि उन्होंने हमें द्वितीय वर्ष में धर्मवीर भारती की कर्णप्रिया पढ़ाई। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। इतना ही नहीं, मैंने उनके व्याख्यानों में अज्ञेय जैसे विद्वानों को भी बैठे देखा है। मैंने उन्हें एक बार बाड़मेर भी बुलाया, जहां वे दो दिन तक ठहरे थे। उनका निधन
साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्षति है।
डॉ. आईदान सिंह भाटी, साहित्यकार, नामवर सिंह के शिष्य
साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्षति है।
डॉ. आईदान सिंह भाटी, साहित्यकार, नामवर सिंह के शिष्य