जस्टिस अशोक कुमार गौड़ ने यह आदेश भींयाराम की ओर से दायर याचिका की सुनवाई में दिए। अधिवक्ता मोहित सिंघवी, हिमांशु चौधरी व ऐश्वर्य आनंद ने भींयाराम की ओर से कहा कि पुरातत्व विभाग ने खसरा नंबर 550 में स्थित प्राचीन मंदिर को पहले तो संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया तथा बाद में पिछले वर्ष निदेशक पुरातत्व विभाग ने टेंडर जारी कर वर्कऑर्डर जारी करते हुए 28 अगस्त 2018 को करीब साढ़े चार लाख रुपए का बजट आवंटित कर दिया गया।
जबकि वर्ष 2014 में पटवारी द्वारा इस मंदिर के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होने व निजी खसरा संख्या 550 में दर्ज होने का कहने के बावजूद इसे गैरकानूनी तरीके से संरक्षित घोषित करने व पुरातत्व विभाग के खाते मेे दर्ज करने के प्रयास जारी रहे, जो गलत है।