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जोधपुर

गहलोत की गारंटी पर भारी पड़ा सनातन कार्ड

जोधपुर गृह जिले में कांग्रेस 10 में से 8 सीट हार गई। गहलोत खुद तो जीत गए, मगर मारवाड़ में कांग्रेस की वैतरणी पार नहीं लगा पाए। यही नहीं, मदेरणा परिवार की दिव्या मदेरणा भी ओसियां से चुनाव हार गई है।

जोधपुरDec 04, 2023 / 07:08 pm

Sandeep Purohit

संदीप पुरोहित/जोधपुर. भाजपा की जीत में मारवाड़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद तो आसानी से चुनाव जीत गए, मगर मारवाड़ में कांग्रेस की वैतरणी पार नहीं लगा पाए। खुद के गृह जिले में ही कांग्रेस पार्टी 10 में से 8 सीटें हार गई। वहीं मदेरणा परिवार की राजनीतिक वारिस दिव्या मदेरणा ओसियां से चुनाव हार गई, विश्लेषक उनकी हार का प्रमुख कारण उनकी भाषा शैली व व्यवहार को बता रहे हैं। भाजपा के लो-प्रोफाइल भैराराम सियोल के दिव्या टिक नहीं पाई। लोहावट में गजेन्द्रसिंह खींवसर ने इस बार रणनीति से चुनाव लड़ा। त्रिकोणीय मुकाबले में देचू, बापिणी व आऊ में उनको अच्छा समर्थन मिला, वहीं लोहावट में बिश्नोई का जादू चला।
मारवाड़ में इस बार रालोपा को भी इस बार झटका लगा है। खींवसर से खुद हनुमान बेनीवाल मात्र 2 हजार वोटों से जीते हैं। हालांकि कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश चौधरी चुनाव जीत गए तो उसके पीछे पाटोदी बेल्ट पर उनकी जबरदस्त पकड़ है। चौधरी पिछले एक वर्ष से अपने क्षेत्र में काफी सक्रिय भी थे। बाड़मेर से तीन बार जीते मेवाराम जैन हार गए। निर्दलीय प्रियंका को भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर उनके प्रति सहानुभूति भी रही।
शिव से अमीनखां तीसरे नंबर पर रहे और जोश से लबरेज कार्यकर्ताओं की फौज ने ही बागी रविन्द्रसिंह भाटी के जीत का मार्ग प्रशस्त किया। अल्पसंख्यक वोटों में दो फाड़ हो गया। फतेहखां कांग्रेस से बागी हो गए थे, इस कारण अमीनखां हार गए। पोकरण से मंत्री शाले मोहम्मद चुनाव हार गए। यहां महंत प्रतापपुरी जीते हैं, शाले मोहम्मद को पूरे अल्पसंख्यक समुदाय के वोट भी नहीं मिले।
सिवाना से कांग्रेस के मानवेन्द्रसिंह तीसरे नंबर पर रहे। भाजपा से हमीर सिंह भायल जीते हैं, कांग्रेस के बागी सुनील परिहार दूसरे नम्बर पर रहे। यदि मानवेन्द्र को जैसलमेर से उतारा जाता तो परिणाम दूसरा होता। वहां से रूपाराम धनदे भी हार गए। रूपाराम को अल्पसंख्यक मतदाताओं ने इस बार सपोर्ट नहीं किया, जो बड़ा वोट बैंक है। पचपदरा से मदन प्रजापत बहुत कम वोट के अंतराल से हार गए। नया जिला बनाने के बावजूद मदन प्रजापत को भाजपा के अरुणकुमार चौधरी ने हराया। गुड़ामालानी से कांग्रेस के कर्नल सोनाराम चौधरी हारे। वे भाजपा से पार्टी बदलकर कांग्रेस में आए थे। यहां के.के. विश्नाई ने लगातार सक्रियता दिखाई, इस वजह से जीत गए।
पाली में भाजपा को बड़ा झटका लगा। 43 साल बाद कांग्रेस का खाता खुला, पांच बार के विधायक ज्ञानचंद पारख चुनाव हार गए। कांग्रेस के भीमराज भाटी सीट निकाल लाए। जैतारण में भाजपा ने चतुष्कोणीय मुकाबले में बाजी मारी। मोदी- शाह की रैली से वोटों में ध्रुवीकरण हुआ। कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री सुरेन्द्र गोयल हार गए, भाजपा के अविनाश गहलोत जीते। सिरोही में पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी ने पिछली हार का हिसाब का चुकता कर दिया। मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा को चुनाव हरा कर, लोढ़ा के खिलाफ कार्यकर्ताओं में थी नाराजगी, वोटों का ध्रुवीकरण भी भाजपा के पक्ष में हुआ।
सीएम के दूसरे सलाहकार व पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य को भी मुंह की खानी पड़ी। वे सोजत से चुनाव हार गए। भाजपा के मजबूत वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाए। भाजपा की शोभा चौहान लगातार दूसरी बार जीतीं। बाली में पूर्व मंत्री पुष्पेन्द्रसिंह छठी बार जीतने में रहे सफल, राणावत की जीत का अंतर कम हुआ, लेकिन कांग्रेस से पूर्व सांसद बद्रीराम जाखड़ को जनता ने स्वीकार नहीं किया। सांचौर से सांसद देवजी पटेल चुनाव हार गए। भाजपा के बागी जीवाराम चौधरी ने जीत दर्ज की। चौधरी के पक्ष में भाजपा का वोट भी शिफ्ट हुआ और जातिगत समीकरण भी पक्ष में रहे। यहां मंत्री व कांग्रेस प्रत्याशी सुखराम विश्नोई को बागी शमशेर अली से नुकसान हुआ।
नागौर के खींवसर में हनुमान बेनीवाल हारते-हारते जीते वहीं मिर्धा परिवार ने जीत का स्वाद चखा। हरेन्द्र मिर्धा ने हालही कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई ज्योति मिर्धा को बड़े अंतर से हराया। जातीय गणित की उलझन के बावजूद मारवाड़ ने परिवर्तन के लिए वोट डाला। जो सनातन कार्ड गारंटियों पर भारी पड़ा।

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