यह कहना है पदमश्री से सम्मनित हिंदी के साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली का। वे शुक्रवार को प्रभा खेतान फाउंडेशन व एहसास वुमन ऑफ जोधपुर की ओर से आयोजित कार्यक्रम ‘कलम’ में अपने निजी जिंदगी से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने अपने लेखन कॅरियर से लेकर विभिन्न साहित्य, पुस्तकों आदि से जुड़े अनुभवों को खुलकर साझा किया। उनका कहना था कि भाइयों पर लिखने से शुरु हुआ यह सिलसिला स्कूल कॉलेज के अध्यापकों से होते हुए समाज ओर सरकार तक गया। यदि समाज, सरकार अथवा कोई भी हो, यदि सच है तो लिखने से नहीं रोक सकोगे।
हिंदी दिल व अंग्रेजी दिमाग की भाषा
डॉ. कोहली ने हिंदी भाषा से जुड़े सवाल पर कहा कि हिंदी दिल की भाषा है और अंग्रेजी दिमाग की। मैंन गणित विज्ञान में ७६ प्रतिशत अंक हासिल करके लिए भी जब हिंदी साहित्य चुना तो लोग पागल कहने लगे, लेकिन मैंने ठान लिया था कि यही करना है। हमें अपनी मातृभाषा में काम करना चाहिए। यदि अपनी भाषा में काम करने पर कोई विरोध भी करता है तो उसका प्रतिरोध करना चाहिए। कुछ लोग अंग्रेजी बोलने में खुद की शान समझते हैं लेकिन मैं कहता हूं मुझे अंग्रेजी नहीं आती। यूएन में भी बोलने का मौका मिले तो हिंदी में ही वहां बात रखूंगा। हिंदी हमारी मां है। मेरा बेटा अमेरिका में रहता है, लेकिन आज भी मुझे मेल हिंदी में करता है। आप भाषा भले ही दस सीखिए, काम कीजिए, लेकिन अपनी मातृभाषा को मत छोडि़ए।
डॉ. कोहली ने हिंदी भाषा से जुड़े सवाल पर कहा कि हिंदी दिल की भाषा है और अंग्रेजी दिमाग की। मैंन गणित विज्ञान में ७६ प्रतिशत अंक हासिल करके लिए भी जब हिंदी साहित्य चुना तो लोग पागल कहने लगे, लेकिन मैंने ठान लिया था कि यही करना है। हमें अपनी मातृभाषा में काम करना चाहिए। यदि अपनी भाषा में काम करने पर कोई विरोध भी करता है तो उसका प्रतिरोध करना चाहिए। कुछ लोग अंग्रेजी बोलने में खुद की शान समझते हैं लेकिन मैं कहता हूं मुझे अंग्रेजी नहीं आती। यूएन में भी बोलने का मौका मिले तो हिंदी में ही वहां बात रखूंगा। हिंदी हमारी मां है। मेरा बेटा अमेरिका में रहता है, लेकिन आज भी मुझे मेल हिंदी में करता है। आप भाषा भले ही दस सीखिए, काम कीजिए, लेकिन अपनी मातृभाषा को मत छोडि़ए।
आप देश नहीं जानते
डॉ. कोहली ने लेखक अयोध्याप्रसाद गौड़ के साथ चर्चा के दौरान कहा कि भले ही आप कश्मीर, कन्याकुमारी घूम लीजिए, लेकिन यदि आपने कालिदास, वाल्मीकि जैसों को नहीं पढ़ा तो आप देश नहीं जानते। इसलिए हिंदी जरुरी है। उन्होंने अभिभावकों से आह्वान किया कि वे अपने बच्चों को हिंदी सिखाएं। इस दौरान डॉ. कोहली ने साहित्यप्रेमियों के सवालों के जवाब भी दिए। अंत में शैलजा सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
डॉ. कोहली ने लेखक अयोध्याप्रसाद गौड़ के साथ चर्चा के दौरान कहा कि भले ही आप कश्मीर, कन्याकुमारी घूम लीजिए, लेकिन यदि आपने कालिदास, वाल्मीकि जैसों को नहीं पढ़ा तो आप देश नहीं जानते। इसलिए हिंदी जरुरी है। उन्होंने अभिभावकों से आह्वान किया कि वे अपने बच्चों को हिंदी सिखाएं। इस दौरान डॉ. कोहली ने साहित्यप्रेमियों के सवालों के जवाब भी दिए। अंत में शैलजा सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।