यहां तक कि अगले दस दिन में वर्तमान पुलिया को ध्वस्त करने की योजना पर अमल किया जाना था, लेकिन सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान रेलवे और राज्य के बीच सामंजस्य की कमी का खुलासा हो गया।
इसे गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने जिला कलक्टर प्रकाश राजपुरोहित को 24 जुलाई को हाजिर रहने को कहा है। वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और न्यायाधीश विनीतकुमार माथुर की खंडपीठ में सुरेन्द्र जैन की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान रेलवे और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त शपथ पत्र पेश किए गए।
रेलवे के अधिवक्ता कमल दवे ने कोर्ट को बताया कि मोहनपुरा पुलिया के नवनिर्माण के लिए रेलवे ने निविदा आमंत्रित कर करीब 9 करोड़ रुपए का कार्यादेश दिया है। अगले दस दिन में वर्तमान पुलिया को ध्वस्त करने का कार्य प्रारंभ किया जाना प्रस्तावित है। छह महीने में पुलिया के नव निर्माण का लक्ष्य है।
तब तो जाया हो जाएंगे 9 करोड़ रुपए
खंडपीठ ने सवाल पूछने शुरू किए, तो नई कहानी सामने आई। दवे ने स्वीकार किया कि 9 करोड़ रुपए से रेलवे केवल अपने हिस्से का नवनिर्माण करेगा।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 से राज्य व जिला कलक्टर के साथ फोर लेन ओवरब्रिज निर्माण के प्रस्ताव पर चर्चा की जा रही है। रेलवे अपने हिस्से की आधी राशि देने को तैयार है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस प्रस्ताव नहीं आया।
जब कोर्ट ने पूछा कि यदि रेलवे 9 करोड़ रुपए खर्च करता है और बाद में फोर लेन ओवरब्रिज का प्रस्ताव आया तो इस खर्च की क्या उपयोगिता रहेगी? दवे ने साफ स्वीकार किया कि ऐसी सूरत में यह पैसा जाया हो जाएगा। राज्य व रेलवे में संवादहीनता की इस स्थिति पर नाराजगी प्रकट करते हुए खंडपीठ ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए कोई गंभीर नहीं है।
महाधिवक्ता के सहायक केएस लोढ़ा ने प्रत्युत्तर के लिए कुछ समय मांगा, लेकिन कोर्ट ने 24 जुलाई को ही सुनवाई मुकर्रर करते हुए जिला कलक्टर को हाजिर रहने को कहा है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि रेलवे जब काम शुरू कर देगा, तब जागने से देर हो जाएगी। इसलिए इस मामले में तत्काल दखल देने की आवश्यकता है।
एक दशक से इंतजार
21 फरवरी, 2009 : जोधपुर विकास प्राधिकरण (jodhpur development authority) ने नए आरओबी का प्रस्ताव रेलवे को भेजा था, जिस पर रेलवे अग्रिम सहमति प्रदान कर चुका था। लेकिन इसके बावजूद किसी सरकारी एजेंसी ने इस प्रस्ताव पर गंभीरता नहीं दिखाई।
27 मार्च, 2010 : उत्तर पश्चिम रेलवे (N/W Railway) के वरिष्ठ मंडल इंजीनियर ने जोधपुर जिला कलक्टर को एक पत्र लिखते हुए मोहनपुरा पुलिया को तकनीकी जांच के आधार पर भारी वाहनों की आवाजाही के लिए सुरक्षित नहीं बताया। पत्र के अनुसार यह पुलिया हल्के वाहनों का आवागमन अधिकतम 15 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर अनुमत किए जाने लायक था। पत्र में पुलिये की मौजूदा स्थिति को देखते हुए नया रेलवे ओवरब्रिज बनाने की जरूरत बताई गई थी।
फिर बदल गए सुर
रेलवे ने आरओबी का प्रस्ताव तैयार कर भिजवाने को कहा था, जिसके प्रत्युत्तर में जेडीए आयुक्त ने एक पत्र मंडल रेल प्रबंधक को लिखा। इस पत्र में जेडीए आयुक्त ने कहा कि चूंकि इसका पुननिर्माण रेलवे सीमा में निर्मित भाग के क्षतिग्रस्त होने के कारण आवश्यक है, लिहाजा इसका पुननिर्माण अपने संसाधनों से करवाना रेलवे की जिम्मेदारी है।
जेडीए ने पुननिर्माण किए जाने पर रेलवे के विद्युतीकरण के लिहाज से इसकी ऊंचाई बढ़ाने तथा पुल की चौड़ाई को बढ़ाते हुए यातायात के दृष्टिगत फोर लेन में परिवर्तित करने की आवश्यकता बताई थी। हालांकि, जेडीए ने तब कॉस्ट शेयरिंग बेसिस पर निर्माण का भी विकल्प दिया था, मगर पिछले एक दशक में कोई प्रस्ताव अमली जामा नहीं पहन पाया।