scriptविलुप्त हो रहे राज्य पक्षी गोडावण पर अब नए सिरे से होंगे शोध, संरक्षण परियोजना को मंजूरी से मिलेगा जीवनदान | new conservation project approved for great indian bustard | Patrika News

विलुप्त हो रहे राज्य पक्षी गोडावण पर अब नए सिरे से होंगे शोध, संरक्षण परियोजना को मंजूरी से मिलेगा जीवनदान

locationजोधपुरPublished: Sep 26, 2018 11:18:38 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

जेएनवीयू के डॉ. गहलोत के नेतृत्व में होगा नए सिरे से शोध
 

research on great indian bustard

Great Indian Bustard, Great Indian Bustard conservation workshop, great Indian bustard in jodhpur, jnvu, research on birds, jodhpur news, jodhpur news in hindi

जोधपुर. राजस्थान के राज्य पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड गोडावण को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड ने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के प्राणिशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ हेमसिंह गहलोत के नेतृत्व में तीन वर्षीय परियोजना को मंजूरी प्रदान की है। इस परियोजना पर 26 लाख खर्च किए जाएंगे। गोडावण की प्रमुख आश्रय स्थली माने जाने वाले बाड़मेर जैसलमेर के राष्ट्रीय मरु उद्यान के कुल तीन हजार एक सौ बासठ वर्ग किमी क्षेत्र में गोडावण पर खतरा लगातार बढ़ रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों की टीम ने गोडावण संरक्षण व स्टेट्स के लिए डीएनपी क्षेत्र के 34 आवास क्षेत्रों में सेम्पल आधारित सर्वे किया।
सर्वे के अनुसार गोडावण की संख्या का घनत्व क्षेत्र में 0.86 प्रति 100 वर्ग किमी में एक से भी कम है। रिपोर्ट में गोडावण की संख्या 70 से 169 तक संभावित मानी गई है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की संकटग्रस्त जातियों की रेड डाटा सूची के अनुसार गोडावण को गंभीर रूप से विलुप्तप्राय की श्रेणी में रखा गया है । इस प्रकार के विलुप्त हो रहे वन्यजीव पर शोध और संरक्षण की जिम्मेदारी पहली बार किसी स्थानीय विश्वविद्यालय को सौपी गई है। गोडावण मुख्य रूप जैसलमेर जिले के डीएनपी सेंचुरी के सुदासरी, गजेई माता व आसपास के इलाकों में से चांधन, खेतोलाई, पोकरण व रामदेवरा में विचरण करते हैं। यहां भी उनकी संख्या दिनोंदिन घटते रहना चिंता का विषय है।
खतरों की पहचान व समाधान पर होगा शोध

नए प्रोजेक्ट के तहत जैसलमेर में वर्तमान में गोडावण की संख्या का विवरण और स्टेटस, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस का प्रयोग करते हुए सैटलाइट इमेज की सहायता से गोडावण के लिए उपयुक्त आवास स्थल का मैप तैयार किया जाएगा। सम्भावित खतरों की पहचान और उनके समाधान पर शोध किया जाएगा। यह शोध गोडावण के संरक्षण में सहायक होंगे।
डॉ हेमसिंह गहलोत, सहायक आचार्य, प्राणि शास्त्र विभाग जेएनवीयू

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो