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जेएनवीयू को मिली एक और उपलब्धि, इटली के साथ मिलकर विकसित किए सेंसर से कैंसरकारक टॉक्सिन की होगी पड़ताल

locationजोधपुरPublished: Oct 31, 2018 11:23:43 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

कैंसरकारी है अफलाटॉक्सिन, एसपर्जिलस कवक से फसलों के जरिए मानव की खाद्य शृंखला में होता है शामिल

research on cancer at JNVU

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गजेंद्रसिंह दहिया/जोधपुर. जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ने इटली स्थित रोम विश्वविद्यालय के साथ मिलकर अफलाटॉक्सिन तत्व का सेंसर विकसित किया है। इसके जरिए दूध सहित अन्य खाद्य पदार्थों में अफलाटॉक्सिन का रियल टाइम टेस्ट संभव है। हालांकि राहत की बात यह है कि राजस्थान में गाय-बकरी के खुले दूध और एक कंपनी के पैकेज्ड दूध में अफलाटॉक्सिन नहीं मिला। यूरोप में तापमान कम व आद्र्रता अधिक होने से वहां दूध में अफलाटॉक्सिन अधिक मिलता है। ऐसे में यह विधि यूरोपियन देशों के लिए काफी फायदेमंद रहेगी।
यूरोपियन यूनियन और भारत के विज्ञान और तकनीकी विभाग (डीएसटी) के संयुक्त तत्वावधान में चलाए जा रहे टेको प्रोजेक्ट 2015- 2018 के लिए (टेक्नोलॉजिकल ईको इनोवेशन फॉर क्वालिटी कंट्रोल एण्ड डी-कंटामिनेशन ऑफ पॉल्यूटेड वाटर एण्ड सॉइल) के अंतर्गत रोम विवि में केमिकल साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लौरा मिकैली को जोधपुर स्थित जेएनवीयू भेजा गया। डॉ. लौरा ने यहां रसायन विज्ञान की प्रो. सुनीता कुंभट के साथ नैनो बायो सेंसर लेबोरेट्री में एक महीने काम कर ‘स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रो केमिकल सेंसर फॉर अल्फाटॉक्सिन मॉनिटरिंग’ विधि विकसित की। इस विधि से दूध की जांच के लिए दूध को सेंट्रिफ्यूज में डालकर तेजी से घूमाया गया, जिससे प्रोटीन अलग हो गया। इसके बाद शेष बचे विलयन में स्टैंडर्ड से अफलाटॉक्सिन की जांच की गई।
क्या है अफलाटॉक्सिन


अफलाटॉक्सिन लीवर व आमाशय का कैंसर पैदा करता है। एसपर्जिलस नाइजर नामक कवक से यह फसलों के जरिए मनुष्य की खाद्य शृंखला में शामिल हो जाता है। प्रयोग के दौरान गाय और बकरी के खाए जाने वाले ग्वार, कपास के बीज, जौ और खेजड़ी की पत्तियों की जांच की, लेकिन उनमें अफलाटॉक्सिन के कारक बहुत कम थे। राजस्थान में तापमान अधिक रहने की वजह से कवक मर जाती है। लेकिन यूरोप के दूध में यह पाया जाता है इसलिए वहां इसकी अनुमोदिन मात्रा 4 माइक्रोग्राम प्रति मिलीलीटर तय कर रखी है। गुजरात की रिसर्च में सामने आया कि मिर्ची सहित अन्य मसालों में अफलाटॉक्सिन की अधिक मात्रा के कारण यूरोपियन देश भारतीय मसालों को ठुकरा देते हैं। इसका एक कारण व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों का उचित भण्डारण नहीं है। आद्र्रता अधिक होने से खाद्य पदार्थों में कवक के जरिए अफलाटॉक्सिन आ जाता है।
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