आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने पत्रिका में प्रकाशित खबरों पर प्रसंज्ञान लेते हुए इस मामले में दोनों ही चिकित्सा संस्थानों से 23 अक्टूबर तक जवाब मांगा है। आयोग ने आदेश में कहा कि गत 8 सितंबर को राजस्थान पत्रिका के जोधपुर संस्करण में प्रकाशित समाचार के अनुसार कांगो फीवर के इलाज को लेकर जोधपुर एम्स व डॉ. मेडिकल कॉलेज की धारणाएं अलग-अलग हैं।
वहीं पत्रिका के 12 सितम्बर के अंक में प्रकाशित समाचार के अनुसार एम्स में कांगो फीवर से दो मरीजों की मौत हुई है। आयोग ने कहा कि इस बीमारी का क्या प्रभाव है व किस प्रकार से फैल सकती है, आमजन को ये जानकारी प्राप्त होनी चाहिए। आयोग ने चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव से पूछा है कि क्या ये बीमारी राज्य के अन्य शहरों में भी है? इसके इलाज के लिए राज्य में क्या सुविधाएं उपलब्ध है?
जोधपुर एम्स अधीक्षक व एसएन मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल से मांगी ये जानकारी 1. कांगो फीवर किस प्रकार की बीमारी है एवं इस बीमारी से बचाव कैसे होता है, बीमारी होने पर इसके इलाज की सुविधाएं कहां-कहां उपलब्ध है?
2. क्या इस बीमारी के अधिक फैलने की (महामारी की तरह) आशंका हो सकती है? 3. क्या जोधपुर शहर के एम्स चिकित्सालय व डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज और अन्य चिकित्सालयों में इस बीमारी की जांच या इलाज सुविधाएं उपलब्ध हैं और यदि नहीं है तो एम्स चिकित्सालय व डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज किस प्रकार से चिकित्सा उपलब्ध करवा रहा है?
पत्रिका व्यू : फिर क्यों ले रहे खतरा मोल? जोधपुर के डाली बाई मंदिर क्षेत्र में कांगो फीवर का पहला केस सामने आने पर मरीज के दोनों बच्चों को पिता के साथ अहमदाबाद रैफर किया गया था। तीनों स्वस्थ होकर जोधपुर लौट आए हैं। जबकि उसके बाद इस बीमारी का कोई भी संदिग्ध बाहर रैफर क्यों नहीं किया गया? यहां उपचार की व्यवस्थित सुविधा नहीं है तो संदिग्धों के उपचार को लेकर जोखिम क्यों बरती जा रही है? गौरतलब है कि एम्स प्रशासन पहले ही एसएन मेडिकल कॉलेज को संदिग्ध मरीज को एमडीएम अस्पताल में रैफर करने के लिए लिख चुका है।