इस मौके कवयित्री तारा प्रजापत प्रीत की ‘ मैं द्रोपदी नहीं ‘ काव्य संग्रह पर हुई पुस्तक चर्चा में डॉ. पुष्पा गुप्ता, डॉ उषा रानी पुंगलिया, सुशीला भंडारी, डॉ चांदकौर जोशी व अर्चना बिस्सा वीणा ने कवयित्री के नारी सशक्तीकरण, जागरूकता और साहस दर्शाने वाली कविताओं का संग्रह बताया और कविताओं में प्रेम, ममता व सामाजिक संदर्भों का भी बखूबी वर्णन दर्शाया गया है। होली स्नेह मिलन के तहत डॉ. उषारानी पुंगलिया ने रंगबिरंगी होली आई, हंसी ठिठौली साथ लाई, मौसम ने ली अंगड़ाई, रंगबिरंगी होली आई, सुशीला भंडारी ने होली की छटा निराली, रंगबिरंगे रंगो की बहार का नाम है होली, दीन-दुखियों को गले लगाने का नाम है होली, भाईचारे व एकता के सूत्र में बंधने का नाम है होली, मधु वैष्णव ने दामन भर प्रीत का बरसों से रखा था, दहलीज की चौखट पर मैंने, उषा शर्मा ने टेसू के फूलों का रंग तन मन को खुशबू से भर जाता, बार.बार यह होली आएं, मातृत्व का बीज उगा जनमन को हर्षित कर जाए.. प्रस्तुत कर रंग जमाया। डॉ. सूरज माहेश्वरी ने मन के आंगन में, पिया तेरे प्रांगण में, एक रंगोली सजाऊंगी, ढेर सारे रंगों को आपस में मिलाऊंगी, विजय बाली ने होलिका तो सब मिल कर सजा दी, पावों में जैसे महावर लगा दी और दीपा परिहार ने फागण री फुहार आई रे, रंगों से बौछार लाई रे . से फागुनी छटा बिखेरी। वहीं डॉ. चांदकौर जोशी ने होली का त्यौहार है, प्रेम अपनत्व गले लगाकर भूल जाओं गम को..,रजनी अग्रवाल ने होली के रंग हजार रे, सखियां होली खेलो रे, अबीर गुलाल लगाओ ऐसो प्रगटे प्रेम प्रगाट रे, बहनों होली खेलो रे, स्वाति जैसलमेरिया ने जली होलिका दे गई होली का यह सन्देश, धर्म नीति की जीत हो कपट का न हो भेस..और.. कमला सुराणा ने मुक्तक मैं.मैं में हम रह गए, कुछ पा न सके हम, ध्रीते हाथ रह गए हम, प्रभु से दूर हो गए…सरस कविताएं सुना कर अभिभूत कर दिया। अंत में कमल मोहनोत ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन स्वाति जैसलमेरिया ने किया।