ये दिशा निर्देश राजस्थान में लागूराजस्थान बाल अधिकारिता निदेशालय ने नाबालिग बच्चों के साथ दुराचार के प्रकरणों के बारे में विस्तृत गाइडलाइन जारी कर रखी है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव ने सन 2013 में इस आशय की अधिसूचना जारी की थी। ये दिशानिर्देश राजस्थान में लागू हैं। इस गाइडलाइन को राजस्थान गाइडलाइन्स फॉर प्रिवेन्शन ऑफ चाइल्ड एब्यूज 2013 के नाम से जाना जाता है। ये दिशा निर्देश पूरे राजस्थान में मान्य हैं और इन्हें बाल अधिकारों के विस्तार के रूप में देखा जाता है। इसमें ‘राजस्थान किशोर न्याय (बालकों की देखरेख व संरक्षण) नियम 2000 के नियम ३१ व 60 (1) की अनुपालना में विभिन्न संस्थाओं में बच्चों के साथ दुव्र्यवहार, शोषण और उपेक्षा से बचाव शामिल है।
देश के कई मामलों में इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्यों कि इसमें इंस्टीट्यूशन (संस्था) शब्द की व्याख्या में बताया गया है कि इसका अर्थ धार्मिक, चैरिटेबल, शैक्षणिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक या सामाजिक उद्देश्य से स्थापित संस्थान से है, जिसमेंं औपचारिक, अनौपचारिक, पंजीकृत, अपंजीकृत,संस्था या रेजिडेंशियल होम आदि शामिल हैं।
गाइडलाइन्स को बाल अधिकार संरक्षण के परिप्रेक्ष्य मेंजरूरत होने पर लागू किया जा सकता है। इसके तहत द जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट 2012 और बालवय में सेेक्सुअल हमले के कानून प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रप फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेज पोक्सो एक्ट 2012 के दृष्टिगत संरक्षण प्रदान करना है। इसका अर्थ बच्चों के सर्वोत्तम हित से उनके शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक विकास से तात्पर्य है।
-यहां बच्चे शब्द का अर्थ 18 साल से छोटा कोई भी व्यक्ति हो सकता है।
-चाइल्ड एब्यूज का अर्थ किसी भी प्रकार का दुराचार करना या दुराचार के लिए प्रवृत्त करना है, जिसमें यौन शोषण व भावनात्मक दुराचार अथवा किसी भी प्रकार का शोषण शामिल है।
-यह बाल श्रम, जबरदस्ती श्रम या बाल तस्करी पर भी लागू है।
-बच्चों के यौन शोषण का अर्थ समय-समय पर परिवर्तित पोक्सो एक्ट 2012 के तहत उनका यौन अपराधों से संरक्षण शामिल है।
-भावनात्मक दुराचार से तात्पर्य व्यक्तियों द्वारा बच्चे की जिम्मेदारी, अधिकारिता या भरोसा तोडऩा है। इसमें बच्चे को किसी प्रकार के संकट में डालना, उसे गंभीर दुव्र्यवहार संज्ञानात्मक, भावनात्मक या मानसिक आघात पहुंचाना भी इसी श्रेणी में आता है।
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