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सिमटते जंगल वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा

locationजोधपुरPublished: Sep 03, 2018 11:18:35 pm

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pawan pareek

फलोदी (जोधपुर) . पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है, क्योंकि जंगल खत्म हो रहे है। इस सीधा खामियाजा वन्यजीवों को भुगतना पड़ रहा है।

Danger on the existence of wildlife

सिमटते जंगल वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा

महेश कुमार सोनी
फलोदी (जोधपुर) . पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है, क्योंकि जंगल खत्म हो रहे है। इस सीधा खामियाजा वन्यजीवों को भुगतना पड़ रहा है। जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में भी इसके दुष्प्रभाव साफ नजर आने लगे है। भुलावे के लिए भले ही यह कहकर संतोष कर ले कि यहां पाए जाने वाले वन्यजीवों में केवल गोडावण ही रेड जोन में है यानि उसकी जनसंख्या खतरे के निशान के नीचे चली गई है, मगर जिस तरह जंगल सिमट रहे है दूसरे वन्यजीव भी कब तक रेड जोन में आने से बचते रहेेंगे? अंदाजा लगाया जा सकता है।
इंटरनेशन यूनियन ऑफ कन्जसर्वेश ऑफ नेचर(आईयूसीएन) एक एेसी संस्था है, जो विश्व में सभी प्रकार के वन्यजीवों की प्रजातियों के आंकड़े रखती है तथा उनके संकटग्रस्त होने या खतरे से बाहर होने या संरक्षण की आवश्यकता को बताती है। आईयूसीएन में विशेषज्ञ समय-समय पर वन्यजीवों के आंकड़ों का विश्लेषण करके उनकी स्थिति को बताते हैं। आईयूसीएन की वन्यजीवों की स्थिति को बताने वाली इस सूची को रेड डाटा बुक कहा जाता है। इस रेड डाटा बुक में जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में पाए जाने वाले वन्यजीवों में से गोडावण को छोड़ लगभग सभी खतरे से बाहर है। लेकिन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम यहां के सभी वन्य जीव शेड्युल-१ में है। यानि इन्हें संरक्षण की जरूरत है, क्योंकि इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
इन वन्यजीवों को है सरंक्षण की दरकार

एवीज (पक्षी)
ग्रेट इंडियनबस्टर्ड- स्थानीय भाषा में इसे गोडावण कहा जाता है। गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी है। यह पक्षी कई बार फलोदी के पास खारा-रामदेवरा की सरहद में देखे गए हंै,लेकिन अब इनकी घटती जनसंख्या व सिमटते आवासों के कारण गोडावण संकट में है।
मोर-मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुतायत से मिलता है, लेकिन तारबंदी व घटने वन क्षेत्रों से इनके आवास कम हो रहे हैं।
गिद्ध-यहां सफेद पीठ व लोंग बिल्ड गिद्ध पाए जाते हैं, लेकिन गिद्ध के विद्युत लाइनों से करंट की चपेट में आने से मौत हो रही है।
मैमेलिया (जरायुज)
चिंकारा-चिंकारा राजस्थान का राज्य पशु है। चिंकारा खेतों में लगी जालियों मेंफंसकर आवारा श्वानों का शिकार बन जाता है तथा जंगलों में पानी व भोजनकी तलाश ये सडक़ पर आकर दुर्घटनाओं में जान गवां देते है। साथ हीक्षेत्र में चिंकारा के शिकार भी इनके अस्तित्व पर खतरा बने हुए है।
मरूलोमड़ी- लोमड़ी सामान्यतया गुफा में रहती है, लेकिन इन प्राकृतिक आवासके लिए जरूरी फोग, बेर की झाडिय़ा कम होने के कारण इनके गुफाबनाने के आवास सिमटने लगे हैं।
मरू बिल्ली-जंगलों में चूहों की कमी होने व खेतों मेंबाड़ की जगह तारबंदी के होने से बिल्ली भी मुश्किल में है। चूहों कोरोडेन्टिशाइड से मार दिया जाता है।
क रेप्टाइल्स (सरीसृप)
डेजर्टमोनीटर लिजार्ड – मोनीटर लिजार्ड को गो भी कहा जाता है। गो फसलों को नुकसान पंहुचाने वाले कीटों को खाते है। खेती में यांत्रिकी के कारण इनके आवास नष्ट हो रहे हैं।
स्पिाइनीटेल्ड लिजार्ड- इसे साण्डा भी कहा जाता है। दुनिया में इसका तेल काफी प्रसिद्ध है तथा यह एकमात्र शाकाहारी छिपकली है, जो कडक़ जमीन पर मिलती है। इनके सिमटते आवासों के कारण खतरा मण्डरा रहा है।

कोबरा-इसे काला सांप भी कहा जाता है तथा ये चूहों के बिल में रहते हैं। चूहों की कमी कारण इनका जीवन भी प्रभावित हुआ है। साथ ही सडक़ों पर आ जाने से सांप वाहनों की चपेट में आकर मर जाते हैं।
कारण जो वन्यजीवन पर बन रहे हैं खतरा-
जनसंख्या वृद्धि के साथ बढ़ता शहरीकरण और खत्म हो रहे प्राकृतिक आवास।

-खेती के तौर तरीकों में आए बदलाव।
-खेतों मेंबाड़ हटाकर तारबंदी करने।

-कीटनाशकोंका अंधाधुंध उपयोग।
-प्राकृतिक जलस्रोतों की देखरेख में कमी।
-लगातार काटे जा रहे वृक्ष।
-वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी।

-शिकार।

क्या कहते हैं वन्यजीव विशेषज्ञ
पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जाने वाले परम्परागत तरीकों को छोडक़र अपनाए जा रहे नए तरीकों से वन्यजीवों को खतरा है। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्राकृतिक जलस्रोतों व वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों का संरक्षण जरूरी है।
डॉ. अनिल छंगाणी, विभागाध्यक्ष,विज्ञान संकाय, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर
वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र का एक हिस्सा है। जिसमें इंसान भी साथ रहता है। इस व्यवस्था में एक भी वन्यजीव का हट जाना पूरे खाद्यजाल को प्रभावित करता है और उसके नकारात्मक प्रभाव मिलते है। साथ ही खेती में यांत्रिकी के आने से वन्यजीव काफी प्रभावित हुए है।
डॉ. सुमित डाऊकिया, एसोसिएट प्रोफेसर,इन्द्र प्रथम विश्वविद्यालय, दिल्ली
वन्यजीवों के संरक्षण के लिए इनके आवासों को बचाना जरूरी है। साथ ही आमजन व सरकारी स्तर पर वन्यजीव संरक्षण के लिए जागरूकता जरूरी है।

डॉ. प्रतापङ्क्षसह, एसोसिएट प्राफेसर, डूंगरकॉलेज, बीकानेर
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