मथुरादास माथुर हॉस्पिटल में हृदय में जन्मजात छेद (एएसडी) और वाल्व की सिकुडऩ (माइट्रल स्टेनोसिस) से पीडि़त 18 साल के एक युवक बिना चीरे ऑपरेशन कर जीवनदान दिया। उसका एक साथ बिना चीरे के बैलून से वॉल्व की सिकुडऩ का इलाज करते हुए हृदय के छेद को डिवाइस से बंद किया था। चिकित्कीय भाषा में इस रोग को लूटेम्बाचर सिंड्रोम कहा जाता है। इस तरह का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी से ही होता है, लेकिन मथुरादास माथुर अस्पताल के चिकित्सकों ने इस मरीज का बिना ओपन हार्ट सर्जरी इलाज किया।
प्रजेंटेशन में समझाई बारीकी बैंकॉक में 6 से 8 अक्टूर तक आयोजित कॉन्फ्रेंस में दिए प्रजेंटेशन में डॉ. रोहित माथुर ने बताया कि सामान्यत: एएसडी डिवाइस क्लोजर तथा माइट्रल स्टेनोसिस का बैलून इलाज किया ही जाता है, पर जब दोनों बीमारियां एक ही मरीज में एक साथ हो जाए चुनौती बढ़ जाती है। इस स्थिति में ना सिर्फ मरीज का डायग्नोसिस बल्कि इलाज भी कठिन हो जाता है। उन्होंने समझाया कि एमडीएम हॉस्टिपल के डॉक्टरों की टीम ने इस केस में कैसे कठिनाइयों को दूर करते हुए बिना ओपन हार्ट उपचार इसका उपचार किया।
पैनलिस्ट की भूमिका डॉ. माथुर ने इसके अलावा इस कॉन्फ्रेंस में हृदय के जन्मजात छेद ( साइनस वेनोसस एएसडी) के डिवाइस क्लोजर के केस में भी पैनलिस्ट की भूमिका भी निभाई। मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य एव नियंत्रक डॉ दिलीप कच्छवाहा और मथुरादास माथुर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. विकास राजपुरोहित ने डॉ. माथुर को बधाई दी।