हाईप्रोफाइल मानी जाने वाली सरदारपुरा पर हमेशा से ही पूरे राजस्थान की निगाह रहती है। भाजपा गहलोत के इस अभेद गढ़ को कभी भेद नहीं पाई है। गहलोत पांच बार विधायक बन चुके हैं और उन्हें हराने के लिए भाजपा हर बार नई रणनीति बनाती है पर कामयाब नहीं होती है। यहीं कारण है कि गजेंद्र सिंह सरदारपुरा को लेकर चर्चा में है। अब सबकी निगाहें दिल्ली पर टिकी हुई हैं। दिल्ली चाहे इस सीट को लेकर कुछ भी फैसला करे पर ग्राउंड यानि जोधपुर में कहानी कुछ अलग ही है। मारवाड़ अपणायत के लिए मशहूर है। कहते हैं यहां तक कि मिठाई से ज्यादा मीठी है यहां की बोली। इन दोनों नेताओं के बीच की कड़वाहट जोधपुर के मूल चरित्र के खिलाफ है। जोधपुर के लोग ये नहीं चाहते हैं कि ये दोनों सरदारपुरा से आमने सामने चुनाव लड़े। इसके पीछे इनका अपना तर्क है। यहां के लोगों की सोच यह है कि राज किसी भी दल का आए पर राज जोधपुर करें। यदि दोनों जीत कर जाते हैं तो जोधपुर का विकास ज्यादा होगा।
महामंदिर के पास रहने वाले अशोक कुमार कहते हैं कि गहलोत-शेखावत के शब्द बाणों ने जोधपुर की अपणायत की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि संजीवनी मामले में लोगों के साथ न्याय होना चाहिए।
जालप मोहल्ला के गोविंद कल्ला ने वहीं के लहजे में कहा कि दोनों इस तरह जोधपुर का मान घटा रहे हैं। गजेंद्र सरदारपुरा की जगह कोई ओर ठोर से लड़े। सारी दुनिया जानें सरदारपुरा अशोक गहलोत रो है। दोनों आमने सामने लड़ेंगे तो अपणायत पर हमला होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष देवड़ा का कहना है कि मानहानि तो जोधपुर की हो रही है। वे कहते हैं कि गहलोत के सामने शेखावत के चुनाव लड़ने पर अखबारों में चर्चा खूब हो गई। सोशल मीडिया पर रीले भी चलेगी पर इससे जोधपुर का भला नहीं होगा। अब सियासी मजबूरियों चाहे इनको आमने सामने लाकर खड़ा कर दें पर जोधपुर शहर की तासीर को यह कड़वाहट नहीं भा रही है।