जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने यह कदम उठाया है। दरअसल, भाजपा ने यह संकेत पहले ही दे दिए थे कि वह किसी गैर-जाट को ही चुनाव मैदान में उतारेगी। वैश्य और पंजाबी समुदाय में टिकट को लेकर मंथन चल रहा था। वैश्य बिरादरी से किसी को चुनावी रण में उतारने पर सहमति भी बन गई थी। पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता मांगेराम गुप्ता के साथ भी बातचीत का दौर चला।
सरकार को ग्राउंड से यह रिपोर्ट भी मिल चुकी थी कि पंजाबी की टिकट काटकर वैश्य को देना महंगा पड़ सकता है। हालांकि अब भी पार्टी की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। अब पंजाबी उम्मीदवार के तौर पर कृष्ण मिढ्ढा पर भाजपा ने दांव तो खेल दिया, लेकिन अब उसे वैश्य सहित बाकी गैर-जाट जातियों को भी साधना होगा। जींद में आमतौर पर वैश्य बनाम पंजाबी चुनाव होता रहा है।
पेशे से डॉक्टर रहे स्व. हरिचंद मिढ्ढा का राजनीति में आना भी एक संयोग ही था। पूर्व सीएम एवं इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने 2009 के विधानसभा चुनावों में पंजाबी और जाट का कम्बीनेशन बनाते हुए मिढ्ढा को चुनाव लड़वाया था। चौटाला अपने गणित में सफल भी रहे और मिढ्ढा विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। 2014 के विधानसभा चुनावों में भी यह समीकरण कारगर सिद्ध हुआ। इस मंथन के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब कृष्ण मिढ्ढा का नाम उपचुनाव की दौड़ से लगभग बाहर हो चुका था, लेकिन रातों-रात पार्टी ने नए सिरे से मंथन किया और आखिर में मिढ्ढा पर ही दाव खेला।
सत्तारूढ़ भाजपा ने मिढ्ढा को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला लेकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह यह उपचुनाव गैर-जाट के बूते लड़ेगी। इससे पहले नगर निगम के चुनावों में जाटों को लगभग दरकिनार कर चुकी भाजपा ने मिढ्ढा के जरिये पंजाबियों को साधने का भी दाव खेला है। वैसे यह बात भी काफी हद तक पहले से ही स्पष्ट थी कि मुख्यमंत्री की वजह से जींद शहर के अधिकांश पंजाबी वोटर भाजपा के साथ ही जाएंगे।