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झुंझुनूं की सुलोचना बनी बेजुबान पशु-पक्षियों का सहारा, खुद के खर्चे पर बचाया हजारों जानवरों को

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3 months ago
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मृत जानवरों का करती हैं अंतिम संस्कार
सुलोचना ने बताया कि 2009 में उन्होंने सबसे पहले मोर को बचाया था। जिसका ट्रीटमेंट करने के बाद वह 9 महीने तक घर पर उनके साथ ही रहा था। अगर कोई पक्षी मृत दिखाई देता है तो सुलोचना उसका अंतिम संस्कार करती हैं। उन्होने बताया की जब भी वह किसी पक्षी, जानवर या महिलाओं को समाज में किसी भी बात को लेकर पीड़ित या परेशान होता देखती हैं, तो उन्हें बहुत तकलीफ होती है। इन सब को देखकर उन्होंने सबसे पहले महिलाओं को पर्दा प्रथा छोड़ने के लिए प्रेरित किया।

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रेस्क्यू के लिए आते हैं कॉल
सुलोचना ने बताया कि कहीं भी अगर कोई पक्षी तकलीफ में दिख जाता है, तो उन्हें रेस्क्यू कर लिया जाता है। अपनी मोटिव के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि जितना हमसे हो सकेगा, उतना पशु-पक्षियों की मदद करेंगे। रेस्क्यू करने के बारे में जानकारी देते हुए सुलोचना ने बताया की रेस्क्यू करने के लिए जब कॉल आता है, तो अगर रेस्क्यू में कोई रिस्क होता है, तो वह अपनी टीम को कॉल करती हैं और तुरंत रेस्क्यू वाली जगह पर पहुंच जाती हैं। उन्होंने बताया कि 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में वह 10 से 15 मिनट में पहुंच जाती हैं। अपनी सबसे मुश्किल रेस्क्यू के बारे में जानकारी देते हुए सुलोचना जतिन सिंह ने बताया कि अभी कुछ दिनों पहले ही एक भारी बैल को गले से पांव तक बहुत ही टाइट रस्सी से बांध रखा था, जिसकी वजह से वह घूम-फिर नहीं सकता था। उसको रेस्क्यू करने के लिए सुलोचना 15 से 20 लोगों की टीम लेकर आईं, उन्होंने बताया कि बैल के पीछे शाम 5 बजे से दौड़ना शुरू किया था और रात के 8 बजे हमने रेस्क्यू कर लिया था।

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खुद उठाती हैं रेस्क्यू का खर्च
इस कार्य में आने वाले खर्च के बारे में जानकारी देते हुए सुलोचना ने बताया कि अभी वह यह सारा खर्च खुद के पैसों से कर रही हैं। वह अपने गांव के अलावा आस-पास के गांव का भी रेस्क्यू करती हैं। जैसे भूरासर, वेद जी की ढाणी, कालेरा का बास,जीत की ढाणी, मरिगसर, नयासर, हमीरी ऐसे बहुत से गांव है, जहां से उनके पास कॉल आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब अगर हमें ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ती है, तो मदद के लिए लोग आ जाते हैं। पहले कोई मदद भी नहीं करता था, क्योंकि इस काम में काफी रिस्क रहता है।

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सुलोचना जतन सिंह से जब बात हुई तो उन्होंने बताया कि वे यूँ तो पिछले कई वर्षों से सामाजिक कुरीतियों का विरोध करती रहीं हैं। जिसमें उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ग्रामीण अंचल की महिलाओ को उनके सामाजिक क्षेत्र से जुड़े हुए अधिकारों के बारे मे भी जागरूक करती रहती हैं। तथा महिला सखी, ग्राम रक्षक जैसे ग्रुप से जुड़कर ग्रामीण क्षेत्र और न्याय व्यवस्था के बीच की कड़ी का काम कर रही हैं। उनकी संस्था एक पहल दोस्ती फाउंडेशन पिछले 3 वर्षों से झुंझुनूं व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों मे सक्रिय भूमिका निभाते हुए 5500 से ज्यादा पौधे रोपण और सेंकड़ों आवारा पशु-पक्षियों का उपचार व्यक्तिगत ख़र्चे पर करवा चुकी हैं। साथ ही हाल मे 8 बालिकाओं को गोद लेकर उनकी पढ़ाई लिखाई से संबधित सारे ख़र्चे संस्था द्वारा वहन किए जाते हैं जिससे उनकी शिक्षा मे किसी भी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं हो।

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