वैज्ञानिक भी हो रहे हैं आकृष्ट इस अवसर पर मुख्य अतिथि डाॅ बी बी त्रिपाठी ने कहा कि वैज्ञानिक भी संस्कृत भाषा की महत्ता को समझकर देववाणी संस्कृत के प्रति आकृष्ट हो रहे हैं। वैज्ञानिकों की अवधारणा है कि संस्कृत की ध्वनियों के उच्चारण से तार्किक क्षमता की वृद्धि होती है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष इस पाठ्यक्रम में झांसी के लगभग सौ लोगों ने प्रवेश लिया था। इस पाठ्यक्रम के माध्यम से लोगों को संस्कृत बोलना, लिखना तथा दैनिक जीवन के कार्यों में उपयोग करना सिखाया जाता है। संस्कृत के प्रशिक्षक आचार्य रजनीकांत ने बताया कि पिछले वर्ष आयोजित हुई परीक्षा का परिणाम अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह तक आ जाएगा। इसके साथ ही साथ नए सत्र के लिए प्रवेश प्रारंभ हो चुके हैं। नए सत्र में अध्यापन दृश्य-श्रव्य और कक्ष प्रशिक्षण के माध्यम से किया जाएगा। इससे संस्कृत को न केवल समझना आसान होगा बल्कि लिखना और बोलना भी सीखा जा सकता है।
तीस अगस्त तक ले सकते हैं एडमिशन आचार्य रजनीकांत ने बताया कि इस पाठ्यक्रम का संचालन जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के साथ ही साथ आर्य कन्या महाविद्यालय, झांसी में भी किया जा रहा है। इन दोनोें ही स्थानों पर संस्कृत संभाषण और लेखन सिखाया जाएगा। इस पाठ्यक्रम का शुल्क 500 रुपए वार्षिक निर्धारित किया गया है। इसमें प्रतिभागियों को अध्ययन के लिए किताबें तथा अन्य सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी। पाठ्यक्रम में प्रवेश 30 अगस्त तक लिया जा सकता है। संस्कृृत के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए आचार्य रजनीकांत प्रयासरत है।