एक तरफ हम डिजिटल इंडिया का सपना देख रहे हैं। देश की तरक्की व संपूर्ण साक्षरता के दावों को हकीकत में तब्दील करने सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सालाना करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। शिक्षा का स्तर बढ़ाने की दिशा में सरकार ने हाल ही में शिक्षाकर्मियों को संविलियन की सौगात भी दी है, लेकिन शिक्षाकर्मियों की फितरत में सुधार नहीं हो रहा है।
मॉनिटरिंग का बंटाधार
शिक्षा विभाग की बदइंतजामी की कहानी कोई नई नहीं है। जिले में ऐसे दर्जनों स्कूल हैं जहां एक -एक स्कूलों में दर्ज संख्या दर्जन भर से अधिक नहीं है। ऐसे स्कूलों में एक- एक शिक्षक तैनात मिलेंगे। जो एक कमरे में सभी क्लास के बच्चों को बिठाकर अ अनार का और आ आम की तालीम दे रहे हैं। मन लगा तो पढ़ाए नहीं तो छुट्टी। जिला मुख्यालय के अंतिम छोर में बसे ऐसे स्कूलों की मॉनिटरिंग करने वाला भी कोई नहीं है।
पलायन कर जाते हैं अभिभावक
शिक्षकों का कहना है कि शासकीय स्कूल में अधिकतर बच्चों के अभिभावक पलायन कर जाते हैं। अपने बाल बच्चों को रिश्तेदारों के पास या दादी दादा के पास छोड़कर चले जाते हैं। कई बच्चे ऐसे होते हैं जो आधे दिन पलायन कर जाते हैं। मन लगता है तब वे स्कूल आते हैं और नहीं तो गायब। इसके चलते स्कूलों में दर्ज संख्या प्रभावित होती है। वहीं जो सक्षम होते हैं वे लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं।
-ऐसे स्कूलों का तीन साल पहले युक्तियुक्तकरण किया गया था। इसके बाद भी ऐसे कई स्कूल बच गए हैं जहां छात्र संख्या बेहद कम हैं और शिक्षक अधिक हैं। इसके लिए शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजा जाता है। युक्तियुक्तकरण शासन स्तर की बात है।
-जीपी भास्कर, डीईओ