बांस को छीलकर कलाकारों द्वारा प्रवेश द्वार बनाया गया है। गणेश जी की प्रतिमा भी बांस से बनाई गई और और कागज, बोरी का ही इस्तेमाल किया गया है। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि कचहरी चौक का राजा को इस बार जय जवान जय किसान थीम पर बनाया जा रहा है। समिति के सदस्यों ने बताया कि खास तौर से रायगढ़ से कारीगर बुलाकर पंडाल गणेश की प्रतिमा को बनाने में एक माह पहले से तैयारी चल रही थी। श्री गणेश की प्रतिमा इको फे्रंडली के लिए आर्टिफिशयल चीजों का उपयोग नाममात्र ही हुआ है।
Read more : Video- MIC ने बीटी सड़क के प्रस्ताव को नहीं दी स्वीकृति, दर्जन भर से अधिक प्रस्ताव को मंजूरी उल्लेखनीय है कि जाज्वल्यदेव गणेश सेवा समिति का यह 11वां वर्ष है। समिति द्वारा हर साल कुछ नया करने का प्रयास किया जाता है। बांस से प्रवेश द्वार बनाने का काम कचहरी चौक में डेढ़ महीने पहले से शुरू हुआ है। रायगढ़ से आए बंसोड़ 15 कलाकारों द्वारा इसे तैयार किया गया है। लाइटिंग इस बार विशेष आकर्षण रहेगी। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि इसमें करीबन 15 लाख रुपए लागत आ रही है।
पंडाल में अलग-अलग दिन सजावट के लिए फ्लावर लाइटिंग की व्यवस्था बिलासपुर से किया गया है। गणेश पंडाल रोशनी से जगमग नजर आए इसके लिए बड़े-बड़े झूमर और फैंसी लाइट लगाई जा रही हैं। पंडालों को और खूबसूरत बनाने के लिए अलग-अलग रंग के कृत्रिम फूल बिलासपुर से लाया जाएगा।
————– छोटे झाड़ के जंगल को बेजाकब्जा से बचाने डलवा दिया राखड़, किसान परेशान
जांजगीर-चांपा. जिले के मालखरौदा विकासखंड के ग्राम पोता में करीब 200 एकड़ जमीन पर छोटे झाड़ का जंगल है, जिसे ग्रामीण धीरे-धीरे कब्जाकर रहे थे। दो साल पहले ग्रामीणों की शिकायत पर एसडीएम, तहसीलदार द्वारा कब्जा हटाते हुए जमीन पर राखड़ डलवा दिया गया। अब राखड़ बारिश से बहकर आसपास के खेतों में पहुंच रहा, जिससे पैदावार कम होने के साथ विकिरण का खतरा मंडरा रहा है। अब ग्रामीणों की सुनने कोई तैयार नहीं है। विशेषज्ञ भी इस स्थिति से उपजे पैदावार में जहरीले रसायनों के घुलने की बात कह रहे हैं।
जांजगीर-चांपा. जिले के मालखरौदा विकासखंड के ग्राम पोता में करीब 200 एकड़ जमीन पर छोटे झाड़ का जंगल है, जिसे ग्रामीण धीरे-धीरे कब्जाकर रहे थे। दो साल पहले ग्रामीणों की शिकायत पर एसडीएम, तहसीलदार द्वारा कब्जा हटाते हुए जमीन पर राखड़ डलवा दिया गया। अब राखड़ बारिश से बहकर आसपास के खेतों में पहुंच रहा, जिससे पैदावार कम होने के साथ विकिरण का खतरा मंडरा रहा है। अब ग्रामीणों की सुनने कोई तैयार नहीं है। विशेषज्ञ भी इस स्थिति से उपजे पैदावार में जहरीले रसायनों के घुलने की बात कह रहे हैं।