बस्तर में पैदा हो रही इस हर्बल चाय की खुशबू सात समंदर पार तक जा पहुंची है। इस हर्बल टी की डिमांड हॉलैंड और जर्मनी आदि देशों काफी है। इस चाय की खास बात यही है कि इसका उत्पादन बस्तर की आदिवासी महिलाओं के समूह मां दंतेश्वरी हर्बल प्रोडक्ट महिला समूह द्वारा किया जा रहा है और यह डब्ल्यूएचओ से भी प्रमाणित है।
मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की अध्यक्ष दसमती नेताम ने बताया कि विकोंरोजिया की जड़ें, स्टीविया, लेमन ग्रास और काली मिर्च से बने इस प्रोडक्टर को तैयार करने में काफी रिसर्च किया गया। डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से इसे बनाने में मार्गदर्शन लिया। उन्होंने चारों जड़ी बूटियों को सही अनुपात में मिलाकर हर्बल चाय तैयार किया। विकोंरोजिया मधुमेह और कैंसर को खत्म करने में कारगर है। इसके लिए पुणे स्थित टिश्यू कल्चर लैब से प्रशिक्षण प्राप्त कर एक पौधे से कई पौधे तैयार करने का हुनर सीखा गया, जिससे इसका प्रोडक्शन आगे लगातार किया जाता रहे।
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि इस हर्बल चाय की खासियत यह है कि इसे बनाने में दूध और शक्कर की जरूरत नहीं पड़ती। स्टीविया मिले होने से इसमें जीरो कैलोरी के साथ मिठास मिल जाती है और लेमन ग्रास से खुशबू। गरम पानी में एक पैकेट हर्बल चाय डालते ही सुगंधित मीठी चाय तैयार हो जाती है। एक कप चाय की कीमत डेढ़ रुपए पड़ती है, यानी यह सस्ती और सेहतमंद दोनों है।