क्या है बायो टायलेट
आज के आधुनिक समाज में बहुत से लोग टॉयलेट का इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन आज भी लोग फ्लश वाले टॉयलेट का इस्तेमाल कम करते हैं। फ्लस टॉयलेट का आविष्कार लगभग 100 साल पहले हुआ था और भारत के सिर्फ 25 प्रतिशत लोग ही इसका इस्तेमाल करते हैं। भारत सरकार ने साल 2013 में हाथ से मैला उठाने पर प्रतिबंध लगाते हुए यह काम मशीनों कराने का ऐलान किया। इसी वजह से बायो टायलेट का इस्तेमाल सामने आया। इस टॉयलेट में शौचालय के नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर लगा होता है, जिसमें एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया मानव मल को पानी और गैसों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान मल के सडऩे पर केवल मीथेन गैस और पानी ही शेष बचता है। इस टायलेट का इस्तेमाल विशेष रूप से ट्रेनों में किया जा रहा है।