पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि वर्षों और दशकों से लोगों को यह विश्वास हो गया है कि संविधान का यह अनुच्छेद स्थायी है। बयान में कहा गया,“भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले ने अब स्पष्ट कर दिया है कि यह अनुच्छेद हमेशा के लिए चला गया है, जिससे लोगों को गहरी निराशा हुई है। आगे आएं और लोगों को आश्वस्त करें कि उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाएगा।”
अपनी पार्टी सरकार से आग्रह करती है कि अधिवास कानून को इस तरह से संवैधानिक ढांचे में लाया जाए, जिससे प्रदेश के निवासियों को भूमि और नौकरियों पर विशेष अधिकार की गारंटी मिले। बयान में कहा गया,“सरकार को प्रदेश का राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करना और विधानसभा चुनाव शीघ्र कराना सुनिश्चित करना चाहिए।” बयान में कहा गया है, “इससे निवासियों को अपने स्वयं के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।”
अनुच्छेद 370 पर शीर्ष अदालत का फैसला परेशान करने वाला:माकपा
वहीं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘परेशान करने वाला’ है और इसके संविधान के संघीय ढांचे पर गंभीर परिणाम होंगे।
माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को भंग करने की चुनौती को खारिज करने का उच्चतम न्यायालय का फैसला परेशान करने वाला है।
बयान में कहा गया, “हमारे संविधान के संघीय ढांचे के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे, जो इसकी मौलिक विशेषताओं में से एक है। फैसले में कहा गया है कि विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद जम्मू-कश्मीर संप्रभुता के किसी भी तत्व को बरकरार नहीं रखता है और इसलिए जम्मू-कश्मीर का संविधान निरर्थक है, लेकिन, क्या विलय पत्र पर किया गया हस्ताक्षर अनुच्छेद 370 में निहित विशेष दर्जे को बनाए रखने की शर्त पर नहीं था?”
बयान में कहा गया कि फैसले में घोषणा की गई है कि जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ के किसी भी अन्य राज्य की तरह है, जिससे यह अनुच्छेद 371 के विभिन्न खंडों के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों और कुछ अन्य को दिए गए विशेष दर्जे से भी वंचित हो गया है।
इस फैसले में जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के गुण-दोष पर विचार करने से बचते हुए कहा गया है कि सॉलिसिटर जनरल ने राज्य का दर्जा वापस करने का वादा किया है। साथ ही अलग लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण को वैध माना गया है। इसलिए, बहाली जम्मू-कश्मीर के मूल राज्य के लिए नहीं है, बल्कि इसका केवल एक हिस्सा है और यहां तक कि यह भी कागज पर एक आश्वासन दिया गया है।
बयान मे कहा गया कि अजीब बात है कि उच्चतम न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को जम्मू-कश्मीर में जल्द से जल्द 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया। इस प्रकार, यह फैसला केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक लंबा अवसर प्रदान करता है।
जब कोई राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन है और उसका राज्य का दर्जा भंग हो गया है, तो क्या निर्वाचित विधानसभा की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल की सहमति को विकल्प के रूप में लिया जा सकता है? अन्य सभी राज्यों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे जहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और इसकी सीमाओं को बदला जा सकता है या राज्य का दर्जा भंग किया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत प्रावधान कहता है कि राष्ट्रपति किसी भी राज्य के पुनर्गठन के लिए विधेयक को संबंधित राज्य की विधायिका को उसकी राय जानने के लिए भेजेगा। यह फैसला केंद्र सरकार को एकतरफा नए राज्यों के गठन, क्षेत्रों के परिवर्तन की पहल करने, मौजूदा राज्यों की सीमाएं या नाम के संदर्भ में अनुमति देता है।
बयान में कहा गया है कि इससे संघवाद और निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के अधिकारों का गंभीर हनन हो सकता है लेकिन मुख्य फैसले और दो सहमत निर्णयों के साथ इस पांच-पीठ के फैसले पर विस्तृत प्रतिक्रिया गहन अध्ययन के बाद ही दी जा सकती है।
बयान के अंत में कहा गया कि हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस फैसले का हमारे संविधान के संघीय ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और यह एकीकरण के नाम पर और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए एकात्मक राज्य संरचना को मजबूत करने का विकल्प प्रदान करता है।