स्वर्णनगरी का सबसे प्राचीन मेला स्थल देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर
रियासतकाल से जैसलमेर नगर का देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है और इसी मंदिर पर सावन मास के प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि को सबसे पहले मेले भरते रहे हैं। जिनमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं। वैसे इस मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं और भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं।
स्वर्णनगरी का सबसे प्राचीन मेला स्थल देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर
जैसलमेर. रियासतकाल से जैसलमेर नगर का देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है और इसी मंदिर पर सावन मास के प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि को सबसे पहले मेले भरते रहे हैं। जिनमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं। वैसे इस मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं और भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं। इनमें महिलाओं की संख्या उल्लेखनीय होती है। वैसे तो प्रत्येक सोमवार को देवचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शनार्थियों की अच्छी भीड़ उमड़ती है, लेकिन सावन मास के दौरान उनकी संख्या कई गुना तक बढ़ जाती हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर पर विशाल मेला भरता है। यह मेला रियासतकाल से भर रहा है। सावन के सोमवार को शहर भर से शिवभक्त इस मंदिर में भगवान शिवशंकर के दर्शन लाभ लेने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर को आकर्षक लाइटिंग से सजाया जाता है। सावन और महाशिवरात्रि सहित अन्य विशेष धार्मिक महत्व की तिथियों को मंदिर में भंडारा होता है, जिसमें बड़ी तादाद में भक्तजन श्रद्धा-भावना के साथ प्रसादी ग्रहण करते हैं। गोपा चौक से दुर्ग के परकोटे के सहारे जाने वाले मार्ग का नामकरण शिव मार्ग इसी मंदिर के कारण पड़ा हुआ है। देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर का सर्वांगीण विकास पिछले दो दशकों के दौरान हुआ है। इसके तहत मंदिर का विशाल परिसर बनाया गया और मस्तक पर चंद्रमा को संजोये शिव मंदिर के साथ परिसर के भीतर अन्य छोटे मंदिरों का भी जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर के बाहर जैसलमेर के प्रसिद्ध खुदाई वाले पत्थरों से मुख्य द्वार बनाये जाने से यह आकर्षक बना और श्रद्धालुओं की सुविधा का भी पूरा ख्याल रखा गया। मंदिर के बाहरी हिस्से में स्थापित की गई सार्वजनिक प्याऊ से रोजाना हजारों लोग अपनी प्यास बुझाते हैं। मंदिर विकास कमेटी का गठन किया हुआ है। जानकारी के अनुसार मंदिर में आने वाले चढ़ावे, परिसर के बाहर बनाई गई दुकानों और जनसहयोग से धन संग्रह किया जाकर मंदिर का विकास करवाया गया है। मंदिर का विकास लगातार जारी है।
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