इस प्रकार तैयार होता है एकल रोट
पोकरण कस्बे में तैयार होने वाले एकल रोट के कुछ विशेषज्ञ है। कस्बे के साथ ही आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी एकल रोट बनाना होता है तो उन्हें ही बुलवाया जाता है। स्थानीय निवासी जगदीश जोशी, लालभा गुचिया, ओमप्रकाश बिस्सा आदि की टीम है, जो यह रोट तैयार करते है। उन्होंने बताया कि इतने बड़े एक रोट को बनाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि पहले जितना आटे का रोटा बनाना है, उसको अलग-अलग टुकड़ों में दूध में गोंदकर एक बड़ी परात में रोटे की आकृति दी जाती है। उसके बाद उस पर सूती कपड़े को चारों तरफ से लपेट दिया जाता है। इस कपड़े के ऊपर चारों तरफ से जूट के बारदाने से इस रोटे को इस तरह लपेट दिया जाता है कि उसमें से थोड़ी सी भी भाप बाहर न आ सके। फिर एक तरफ गोबर की थेपडिय़ों के दो बड़े-बड़े ढेर बनाकर जलाए जाते है और इस रोटे को बड़ी निसंडी पर रखकर उसे अंगारों के एक ढ़ेर पर रोटे की मात्रा के अनुसार रख दिया जाता है। दूसरे ढेर के अंगारों को उसके ऊपर डालकर उसे छोड़ दिया जाता है। यदि रोटा 100 किलो का है तो कम से कम 24 घंटे और 200 किलो का है तो 48 घंटे बाद उसे अंगारों से बाहर निकाला जाता है। तब तक वह अंदर ही अंदर भाप से इस तरह पूरा पक जाता है एवं कहीं कोई आटा कच्चा रहने की गुंजाइश नहीं रहती है।
ऐसे बनता है चूरमा
रोटा विशेषज्ञों ने बताया कि जब रोटा पूरी तरह से पककर तैयार हो जाता है तो उसे मंदिर में लाकर चढ़ाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि यदि 100 किलो आटे का रोटा बनाया जाता है तो उसमें करीब 75 किलो दूध में पहले आटे को गौंदा जाता है। सिकने के बाद रोटे का चूरमा बनाकर उसमें 50 किलो देशी घी, 40 किलो शक्कर, 20 किलो सूखा मेवा मिलाकर प्रसादी तैयार की जाती है। सभी मिश्रण मिलाने के बाद करीब 300 किलो की प्रसादी तैयार होती है और मंदिर आने वाले सभी श्रद्धालुओं को चूरमे की प्रसादी का वितरण किया जाता है।
बांकना में 351 तो सालमसागर में 301 किलो का रोट
कस्बे के बांकना हनुमान मंदिर में इस वर्ष 351 किलो का रोट का प्रसाद चढ़ाया गया। 351 किलो रोट से करीब एक हजार किलो चूरमा तैयार किया गया। इसी प्रकार सालमसागर तालाब में 301 किलो आटे का रोट बनाया गया और करीब 900 किलो का चूरमा तैयार हुआ।