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जयपुर

प्रदेश की उन्नति के बीच सियासी विचारधारा की जंग, अब ऐसे निकालना होगा हल

अफसर संभालें जिम्मा: ताकि विकास में बाधा न बने विचारधारा…

जयपुरMay 26, 2019 / 02:14 am

dinesh

ashok gehlot Modi
जयपुर।

राजस्थान और दिल्ली.. कहने को इन दोनों के बीच दूरी बहुत अधिक नहीं, लेकिन राजनीतिक नजरिए से देखें तो दोनों के बीच फासला अब बहुत बड़ा है। मात्र छह माह पहले से ही तुलना करें तो राज्य और केन्द्र में सत्ता का सियासी मिजाज बिल्कुल विपरीत हो गया है। पिछले वर्ष 11 दिसम्बर को आए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली थी। जबकि, 23 मई को आए लोकसभा चुनाव परिणाम में दिल्ली के गढ़ पर भाजपा का परचम लहरा रहा है। राजनीति की बिल्कुल विपरीत विचारधाराओं के बीच प्रदेश के हित दांव पर नहीं आएं, इसके लिए जरूरत है कि दिल्ली में बैठी राजस्थान की नौकरशाही यह जिम्मा संभाले। जहां पर भी राज्य की जनता से जुड़े मसले आएं वहां हर जगह पर हमारे नौकरशाह दोनों विचारधाराओं के बीच सेतु का काम करेंगे तो राज्य के हित सियासत के संभावित दांव-पेचों से सुरक्षित रह पाएंगे।
यह सच है कि जब भी केन्द्र या राज्य में सत्ता परिवर्तन होता है तो नौकरशाहों की कुर्सियां भी उसी अनुसार बदल जाती हैं। हर सरकार अपनी सहूलियत के मुताबिक अफसर लगाती हैं। हमारे यहां भी कई ऐसे वरिष्ठ अफसर हैं, जिनके पास भाजपा की रीति-नीति के अनुसार योजनाओं को क्रियान्वित करने का लम्बा अनुभव है। साथ ही वे राज्य की जरूरतों और जमीनी हालात से भी भलीभांति परिचित हैं। ऐसे अफसर अब केन्द्र में प्रतिनियुक्ति लेकर राज्य की खुशहाली में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में वित्त सचिव रहे आइएएस अधिकारी प्रवीण गुप्ता, सीएमओ में रहे तन्मय कुमार, अरीजित बनर्जी और शिखर अग्रवाल की केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की चर्चा भी पिछले दिनों खूब रही थी।
यों फंसती हैं फांस
राज्य की उन्नति के बीच सियासी विचारधारा आड़े नहीं आनी चाहिए, लेकिन ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जबकि केन्द्र और राज्य के बीच योजनाओं को लेकर जमकर जुबानी जंंग हुई है। हाल ही केन्द्र ने जब आयुष्मान भारत योजना लागू की तो गैर भाजपा शाासित तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, दिल्ली और पंजाब ने इसे लागू करने इनकार कर दिया।
नहीं मिली अनुमति
राज्य व केन्द्र में सियासी बदलाव के बाद अब राजस्थान के कई अफसर दिल्ली का रुख कर सकते हैं। इनमें अधिकांश राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय बड़ी हैसियत में रहे थे। लेकिन अब कम महत्व के पदों पर चले गए। ऐसे अफसरों ने कुछ महीने पहले प्रतिनियुक्ति का आवेदन किया था, लेकिन राज्य सरकार ने मंजूरी नहीं दी।
ऐसे होती है प्रतिनियुक्ति
भारतीय सेवा के अफसर केन्द्र में प्रतिनियुक्ति के लिए खुद आवेदन करता है। केन्द्र में एंपेनलमेंट होने के बाद अफसर को राज्य सरकार के पास आवेदन करना होता है। राज्य सरकार मंजूरी देकर अफसर का नाम केन्द्र को भेजती है। केन्द्र सरकार की स्वीकृति मिलने के बाद अफसर को प्रतिनियुक्ति मिलती है।
देश और राज्य को फायदा
केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय मानता है कि आइएएस अफसरों के राज्य से केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने और वापस लौटने की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है। इससे राज्यों के स्तर पर क्षमताओं का विकास होता है। इससे केन्द्रीय फैसलों में राज्यों का नजरिया और राज्यों में निर्णय करते वक्त राष्ट्रीय दृष्टिकोण का समावेशन भी होता है।

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