सीएम गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार इसके लिए मंत्रियों का एक समूह गठित करेगा जो इन गड़बड़ियों की जांच करेगा। मुख्यमंत्री ने वित्त एवं विनियोग विधेयक 2019 पर चर्चा के बाद अपने वक्तव्य के दौरान यह बात कही।
उन्होंने कहा कि भामाशाह योजना की समीक्षा की जा रही है, ताकि योजना का निहित स्वार्थी लाभ नहीं उठा पाए। भामाशाह कार्ड या आयुष्मान भारत या मुख्यमंत्री निशुल्क दावा योजनाओं से स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्रदान किया जाएगा।
‘पत्रिका’ की खबर पर लगी मुहर
भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना में कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को लेकर ‘पत्रिका’ ने भी लगातार खबरें प्रकाशित और प्रसारित कीं। खोजपरक पत्रकारिता का उदाहरण देते हुए ‘पत्रिका’ ने पिछले दिनों ही खुलासा किया था कि किस तरह से कुछ निजी अस्पतालों ने नियम विरुद्ध जाकर योजना में धांधली मचाई हुई है। खुलासे में ये सच्चाई भी सामने आई थी कि निजी अस्पताल मरीजों के भामाशाह कार्ड पर गलत तरीके से मोटी कमाई कर रहे हैं।
सरकार सालाना करती है 1000 करोड़ से भी अधिक खर्च
प्रदेश में संचालित भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना पर सरकार सालाना 1000 करोड़ से भी अधिक खर्च करती आ रही है। योजना में अधिक से अधिक मरीजों को लाभ मिले, इस उद्देश्य से इस योजना पर पिछली सरकार का फोकस रहा। लेकिन कुछ निजी अस्पताल योजना के नाम पर चांदी कूटने का काम कर रहे हैं। कई मामलों में तो कुछ अस्पताल मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहे।
इस तरह के उदाहरणों को देखते हुए भाजपा सरकार के समय शुरू इस योजना में पहले भी फर्जी क्लेम उठाए जा चुके हैं। जांच के बाद कई अस्पताल को प्रतिबंधित व योजना से बाहर करने की कार्रवाई भी हुई। अब फिर कुछ निजी अस्पताल गरीब मरीजों को अंधेरे में रखकर और उनकी जान से खिलवाड़ कर रहे है।
पैनल्टी चुकाकर करप्शन जारी
हैरत की बात तो ये भी है कि बीमा योजना में सरकारी राजस्व को चपत लगाने वाले प्राइवेट अस्पताल कुछ प्रतिशत रकम पैनल्टी के रूप में जमा कराकर वापस इस योजना से जुड़ रहे हैं। इनमे से कुछ तो वापस से वही ‘खेल’ करने से भी नहीं चूक रहे। यह भी सामने आया है कि दिसंबर 2017 से अब तक करीब 110 निजी अस्पतालों को इस योजना से डिपैनल्ड करने की कार्रवाई भी की गई है। उनमे से करीब 90 ने उच्च स्तर पर जाकर अपील की और इनमें से करीब 70 को वापस योजना में रीपैनल्ड कर दिया।
एक साल में 300 करोड़ तक का फर्जी भुगतान! दरअसल, गड़बड़ी के दोषी प्राइवेट अस्पतालों को योजना से डीपैनल्ड किया जाता है। लेकिन सामने आया कि कुछ मामलों में तो प्राइवेट अस्पतालों को एक नहीं दो बार तक पैनल्टी लगा फिर जोड़ दिया गया। पता चला कि योजना से जुड़े अस्पतालों की रेंडम जांच भी होती है, उनमें से करीब 20 से 30 प्रतिशत में गड़बड़ी मिलती है। यानी पूरी योजना में सालाना करीब 200 से 300 करोड़ रुपए का फर्जी भुगतान उठने की आशंका है।