थाने का एक कांस्टेबल मुख्य अभियुक्त छोट्या के सम्पर्क था। छोट्या थानागाजी क्षेत्र में अवैध शराब के कारोबार में लिप्त था। उसी कारण उसकी कांस्टेबल से नजदीकी थी। उसकी संदिग्ध भूमिका को लेकर लगातार शिकायतें भी मिल रही थी। इसी को देखते हुए उसका थाने से तबादला भी किया गया था। हालांकि अपनी पहुंच के चलते उसने आदेश की पालना नहीं होने दी। वह तबादला होने के बाद भी थाने पर ही तैनात था। युवती से बलात्कार की घटना के बाद आरोपी युवक पीडि़त पक्ष को धमकी देकर रुपए मांग रहे थे। इसके साथ वे बराबर यह भी ध्यान रखे हुए थे कि पीडि़त पक्ष ने पुलिस को सूचना तो नहीं दी है। कांस्टेबल लगातार उसे थाने की कार्रवाई की जानकारी दे रहा था।
पुलिस की कार्यशैली को लेकर इस तरह के कई खुलासे विभागीय व प्रशासनिक जांच में हुए हैं। घटना के बाद पुलिस और सरकार की किरकिरी हुई तो विभागीय जांच डीआइजी जोस मोहन और प्रशासनिक जांच सम्भागीय आयुक्त केसी वर्मा को दी गई थी। डीआइजी (सतर्कता) जोस मोहन ने अपनी जांच 20 मई को पुलिस महानिदेशक को सौंप दी। इसके बाद जांच रिपोर्ट सरकार को भिजवा दी गई। सम्भागीय आयुक्त के.सी.वर्मा ने अपनी जांच शुक्रवार को ही सरकार को सौंपी है। दोनों ही जांच में कई पुलिस अधिकारियों की भूमिका तय की गई है।
थानाधिकारी व उप अधीक्षक पर संकट
दोनों जांच रिपोर्ट में सबसे अधिक जिम्मेदारी थानाधिकारी सरदार सिंह और उप अधीक्षक जगमोहन शर्मा की बताई गई है। पुलिस अधीक्षक के निर्देश के निर्देश के बाद थानाधिकारी ने समय पर मामला दर्ज नहीं किया। वह अपने बचाव में कह रहे हैं कि सूचना मिलते ही आरोपियों को पकडऩे का प्रयास शुरू कर दिया था। हालांकि आरोपी दो मई को मामला दर्ज होने और उसके बाद सात मई तक गिरफ्तार नहीं हुए थे। पीडि़त पक्ष के दो मई को थाने पहुंचने के बाद वे करीब 12 बजे से देर शाम तक थाने बैठे रहे। सामान्य रूप से मामला दर्ज होने पर में आधे से एक घंटा लगता है। इस मामले में थाने पर उपस्थित पुलिसकर्मियों ने अत्यधिक समय लगाया। इसी तरह मामले की जांच उप अधीक्षक को दिए जाने के बाद भी जांच अधिकारी जगमोहन शर्मा ने गम्भीरता नहीं बरती। उन्होंने स्वयं के बजाय थाने के पुलिसकर्मियों को ही कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए कह दिया।
होगा मामला दर्ज, बर्खास्तगी सम्भव इस मामले को लेकर सरकार गम्भीर है। जांच रिपोर्ट से साफ है कि पुलिस के स्तर पर गम्भीर लापरवाही रही। मामला दर्ज करने में देरी कानूनी अपराध है। दिल्ली में हुए निर्भया कांड (
Nirbhaya case ) के बाद कानून में संशोधन कर इसी देरी को अपराध माना गया है। यह आइपीसी की धारा 166 ए के तहत अपराध है। देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनकी बर्खास्तगी सम्भव है।