सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सात लाख रुपए सालाना आय से छूट वाली श्रेणी में एससी—एसटी—ओबीसी के साथ सरकार की पैरवी करने वाले स्टेंडिंग और पैनल वाले वकीलों को शामिल माना है। परन्तु विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल, न्यायमित्र या स्वेच्छा से गरीबों की मुफ्त पैरवी करने वाले वकीलों को छूट का लाभ नहीं मिल पाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इनका उल्लेख नहीं किया है।
राजस्थान हाईकोर्ट में एक महिला न्यायाधीश हैं, लेकिन वे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट से हैं। स्थानीय महिला न्यायाधीश यहां नहीं हैं और वकील कोटे से अब तक महिला न्यायाधीश बनी भी नहीं है। हालांकि दूसरे प्रदेशों की महिला न्यायाधीश या न्यायिक अधिकारी कोटे से महिला न्यायाधीश राजस्थान हाईकोर्ट में रही हैं।
हाईकोर्ट कुल महिला पद जज
मद्रास 75 11
बॉम्बे 94 09
इलाहाबाद 160 07
कलकत्ता 72 07
दिल्ली 60 07
पंजाब हरियाणा 85 07 06 हाईकोर्ट में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं
तेलंगाना, हिमाचल प्रदेशउत्तराखंड, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर हाईकोर्ट ऐसे हैं, जहां एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है।
संविधान में उच्च न्यायपालिका में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। फिर भी केंद्र सरकार ने सीजेआइ व सभी हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीशों से एससी-एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक व महिलाओं के नाम भी भेजने को कहा है। इसके लिए केंद्र सरकार ने कई बार एडवाइजरी नोट भेजे हैं। लेकिन कॉलेजियम को मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
पीपी चौधरी, केन्द्रीय विधि राज्य मंत्री
महिलाओं व समाज के गरीब वर्गों के लिए पैरवी करने वाले वकीलों को आयसीमा में छूट नहीं देना गलत है। इन वर्गों को भी आयसीमा में छूट मिलनी चाहिए, इसके लिए राजस्थान बार काउंसिल की बैठक में मुद्दा उठाया जाएगा।
संजय शर्मा, सदस्य एवं पूर्व चैयरमेन, राजस्थान बार काउंसिल
न्यायपालिका में महिला वकीलों की संख्या बेहद कम है। महिलाएं पर्याप्त संख्या में आगे आएं, इसके लिए महिलाओं का कोटा सुरक्षित होना चाहिए और आय सीमा में महिलाओं को भी छूट तो मिलनी ही चाहिए।
संगीता शर्मा, महासचिव, राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन जयपुर
महिला वकीलों को भी आय सीमा में छूट होनी चाहिए। एससी, एसटी, ओबीसी को छूट दी है, उसका लाभ उन वर्ग की महिलाओं को मिलना चाहिए। मैंने तो संसद सदस्यों में भी महिलाओं का 30% कोटा तय करने की मांग उठाई है।
जॉर्ज बेकर, मनोनीत सांसद, एंग्लो इंडियन कोटा (प. बंगाल)