हाईवे पर यातायात का दबाव
अगर पिछले एक माह की बात करें तो अब तक राज्य के विभिन्न इलाकों में सड़क हादसों में दर्जनों की संख्या में पशुओं की मौत हो चुकी है। खासतौर पर गाय बड़ी संख्या में दुर्घटना की शिकार हो रही हैं और अधिकांश को इलाज नहीं मिल पाता एेसे में वह दम तोड़ देती हैं। रात में वाहन तेज रफ्तार से चलने की वजह से ऐसी स्थिति बनती है। अगर बात हाईवे की करें तो नेशनल हाईवे पर यातायात का भारी दबाव रहता है। सुबह से लेकर रात तक हजारों वाहन निकलते हैं। बीच रास्ते में बैठे रहने के कारण कई बार वाहन चाल मवेशियों को बचाने के चक्कर में वाहन को टकरा देते हैं या फिर पलटी खा जाते हैं। कई वाहन चालक तो मवेशियों को ही टक्कर मार कर चले जाते हैं।
अगर पिछले एक माह की बात करें तो अब तक राज्य के विभिन्न इलाकों में सड़क हादसों में दर्जनों की संख्या में पशुओं की मौत हो चुकी है। खासतौर पर गाय बड़ी संख्या में दुर्घटना की शिकार हो रही हैं और अधिकांश को इलाज नहीं मिल पाता एेसे में वह दम तोड़ देती हैं। रात में वाहन तेज रफ्तार से चलने की वजह से ऐसी स्थिति बनती है। अगर बात हाईवे की करें तो नेशनल हाईवे पर यातायात का भारी दबाव रहता है। सुबह से लेकर रात तक हजारों वाहन निकलते हैं। बीच रास्ते में बैठे रहने के कारण कई बार वाहन चाल मवेशियों को बचाने के चक्कर में वाहन को टकरा देते हैं या फिर पलटी खा जाते हैं। कई वाहन चालक तो मवेशियों को ही टक्कर मार कर चले जाते हैं।
शहर हो या फिर ग्रामीण इलाके देखने में आया है कि व्यस्ततम मार्गों पर दिन रात में बीच रास्तों पर मवेशी बैठने के कारण परेशानी बनी रहती है। जिला प्रशासन और नगर पालिकाओं की ओर से आवारा मवेशियों को पकडऩे के लिए अभियान चलाया जाता है लेकिन वह भी कुछ दिन बाद बंद हो जाता है। वहीं लाखों रुपए गौशालाओं में सरकार की ओर से या फिर अन्य भामाशाहों की ओर से गौशालाएं तो बनवाई जाती हैं लेकिन उसमें गायों की सही परवरिश नहीं हो पाती। आवारा गाय और सांड सड़कों पर घूमते रहते हैं और लोगों को तो चोटग्रस्त करते हैं ही साथ ही खुद भी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।