भरतपुर बना बदलापुर: 2 साल में बदले की आग में हुए 7 हत्याकांड
राज्य में पुलिस से अधिक आपराधिक गिरोह सक्रिय हैं। अपराधी बे-लगाम हैं, पुलिस लाचार और जनता भगवान भरोसे। लगातार बढ़ती वारदातें आम जन-मन को झकझोर रहीं हैं। लगता है अपराधियों में पुलिस का भय खत्म हो गया है। तभी तो इसी साल उदयपुर में बजरंग दल कार्यकर्ता राजू की गोली मारकर हत्या कर दी गई। सीकर में गैंगवार हुई। गैंगस्टर राजू ठेहट को उसकी विरोधी गैंग ने अंधाधुंध गोलियां बरसाकर चिरनिंद्रा में सुला दिया। पिछले साल नागौर कोर्ट के बाहर हरियाणा के गैंगस्टर संदीप विश्नोई की गोली मारकर हत्या कर दी। अलवर में बहरोड़ थाने में घुसकर हरियाणा के अपराधी गैंगस्टर पपला गुर्जर को छुड़ाकर ले गए। जोधपुर में सुरेश सिंह की पुलिस कस्टडी में दो शूटरों ने पांच गोली मारकर हत्या कर दी। जयपुर में अजय यादव को खुलेआम फायरिंग करके मार दिया गया।
अपनी खाल बचाने के लिए यह तर्क भी दिया जाता है कि बाहरी गैंग ज्यादा सक्रिय हैं। क्या यह सच में पुलिस की करनी पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं है? पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आए दिन सवाल उठते हैं। प्रश्न यह भी उठता है कि अपराधी इतना साहस कैसे कर पाते हैं कि वे पुलिस को छकाकर उसके लिए निरंतर चुनौती खड़ी कर दें।
राजस्थान में गैंगस्टर कुलदीप जघीना को गोलियों से भूना, पुलिसकर्मियों की आंखों में मिर्ची झोंककर मारी गोली
दरअसल जनता को दिखाने के लिए प्रतीकात्मक कार्रवाई पुलिस की कार्यशैली बन गई है। राजस्थान में बीते साढ़े तीन साल में 6 हजार 241 हत्याएं हो चुकी हैं। देखा जाए तो वर्ष 2020 से लगातार हत्याओं का आंकड़ा बढ़ रहा है। अपराध का ग्राफ बढ़ना राज्य के लिए खतरनाक है। जनता पुलिस से आस लगाए है लेकिन पुलिस अपराधियों के आगे बेबस है। लोगों के हिस्से में आते हैं सिर्फ आंसू। क्या ये घटनाएं बहुत ही बेशर्मी से हमारी व्यवस्था को मुंह नहीं चिढ़ा रही हैं?
अब तो चुनावी साल है। पुलिस को अब तो हरकत में आ जाना चाहिए। अपराधी को बस उसके आपराधिक कृत्य के आधार पर रोके न कि उसके राजनीतिक रसूख को ध्यान में रखकर अपने कदम पीछे खींचे। पुलिस के प्रति फिर भरोसा कायम होने के लिए जरूरी है कि सड़कों पर उसकी मुस्तैदी और हवालात में अपराधी नजर आएं। अन्यथा पुलिस के इकबाल पर फिर सवाल उठेगा।