मैने अपनी जिंदगी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में लगा दी पर अपने बच्चों पर इसके प्रभाव के लिए तैयार नहीं हूं। 2005 में जब मेरी तीसरी संतान का जन्म हुआ तब उस वक्त फ्लिप फोन तकनीकी दुनिया का सबसे बेहतरीन गैजेट था। अब मुझे पता चला है कि मेरे तीनों बच्चे दुनिया में तेजी से बदल रही तकनीक का हिस्सा हो गए हैं। मैने अपने कॅरियर का पूरा समय तकनीक को समझने के लिए माइक्रोसॉफ्ट को दिया ताकि मैं कुछ अच्छा कर सकूं। अब भी मैं स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के लिए तैयार नहीं हूं। ऐसे अभिभावक जिनके बच्चे मेरे बच्चों की उम्र के हैं। मुझे समझ नहीं आता कि सोशल मीडिया बढ़ते हुए बच्चों में क्या बदलाव ला सकता है जैसा कि माता-पिता चाहते हैं। मैं अभी इसे समझने की कोशिश कर रही हूं।
बदलाव की गति मुझे सबसे अधिक आश्चर्यचकित करती है। मेरी छोटी बेटी जब हाईस्कूल गई तो उसे बड़ी बेटी की अपेक्षा अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा जो उससे कुछ साल ही बड़ी थी। अब वे कॉलेज में हैं। 2010 में मुझे पता चला कि छोटी बेटी के दोस्त इंस्टाग्राम और स्नैपचैट पर अधिक समय गुजारते हैं। ये दोनों ऐप उस वक्त नहीं थे जब बड़ी बेटी ने सोशल मीडिया की दुनिया में कदम रखा था लेकिन मैं स्मार्टफोन और सोशल मीडिया को लेकर आशावादी हूं कि लोगों और बच्चों के लिए क्या कुछ कर सकता है। मैं बच्चों को स्मार्टफोन इस्तेमाल करते देखती हूं तो रोमांचित हो उठती हूं। डॉक्टर बीमारियों या लोगों की सेहत संबंधी जानकारी के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐप और सोशल मीडिया से ही अलग-अलग समुदायों के लोगों को किसी विषय पर सहयोग मिलता है।
फिर भी एक मां होने के नाते हर कोई चाहता है कि उसका बच्चा सुरक्षित और खुश रहे। मैं चिंतित रहती हूं और मैं सोचती हूं कि मैं चीजों को कैसे अलग कर सकती हूं। अभिभावकों को खुद तय करना होगा कि परिवार के लिए क्या करना है लेकिन मैं अपनी बेटियों को कंप्यूटर देने से पहले लंबे समय तक इंतजार और इसपर मंथन करने की पक्षधर हूं। फोन और ऐप उनके लिए न तो अच्छे हैं और न ही बुरे, लेकिन किशोर जिनके पास जिंदगी के भावनात्मक विचारों, परेशानियों और असमंजस की स्थिति को समझने की शक्ति नहीं होती है। ऐसे में बढ़ती हुई उम्र के साथ वे अपनी परेशानियों को बढ़ा सकते हैं। मेहरबानी का भाव रखना, बहिष्कार की स्थिति में खुद को संतुलित करना, आजादी के साथ आत्म नियंत्रण की भावना का होना जरूरी है। सबसे अहम है कि शुरुआत से ही बच्चों को सहानुभूति के बारे में बताना चाहिए ताकि वे सही गलत का फैसला बेहतर ढंग से कर सकें।
वहीं, अभिभावक जो ये फैसला करने की कोशिश कर रहे हैं कि वे स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के बीच अपना काम कैसे करें। मैं कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बात करना चाहूंगी जिससे मुझे और मेरे दोस्तों को मदद मिली है। उम्मीद है कि ये सलाह बातचीत को आगे बढ़ाने में मदद करेगी और अभिभावकों को इससे काफी फायदा होगा।
मुद्दे को समझें
एक खबर चली ‘हैव स्मार्टफोन डिस्ट्रॉयड ए जनरेशन’ (क्या स्मार्टफोन एक पीढ़ी को खत्म कर रहे हैं)। हेडलाइन भयानक थी। लेख में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया को भावनात्मक तनाव से जोड़ा गया था। उदाहरण के तौर पर एक 8वीं क्लास का बच्चा हफ्ते में दस घंटे से अधिक सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है तो इसका असर उसकी खुशी पर पड़ेगा ही।
स्विच से दूर रहें
मेरी सलाह है डिवाइस फ्री डिनर प्लान करें यानि रात के खाने के वक्त कोई मोबाइल या दूसरा गैजेट पास न रखें। खाने की टेबल पर जब बैठें तो ऐसा कोई उपकरण न हो जिसमें ऑन और ऑफ का स्विच हो। आप ऐसा करते हैं तो परिवार और बच्चों के बीच जो बातचीत का दौर शुरू होगा वह संतुष्टि और खुशी का भाव देगा।
शो के बारे में बात करें
नेटफ्लिक्स शो देखना अच्छा है लेकिन अभी ये ताजा मसला है। यह तय करना होगा कि क्यों। अगर हां तो किन शर्तों के साथ। निर्णय लेने के लिए खुद को तैयार करें। इससे आप शो के बारे में बच्चों से बात कर सकते हैं और उन्हें उस शो से क्या सीखना है, बता सकते हैं।
बच्चों को समय दें
मेरी बड़ी बेटी कॉलेज में है। बेटा हाई स्कूल के अंतिम वर्ष में है। मंैने सोचना शुरू कर दिया है कि कैसे स्मार्टफोन और सोशल मीडिया ने कॉलेज कैंपस को बदल दिया है। बच्चे की कॉलेज लाइफ के साथ आप भी समय दें ताकि उसे लगे कि आपका सहयोग कर रहे हैं।
योजना बनाने में मदद लें
मैं अमरीकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के फैमिली मीडिया प्लान की सराहना करती हूं। इससे आपको पता चलेगा कि कैसे लोग अलग-अलग मीडिया में उलझते जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि एक ही सांचें में सबको नहीं ढाला जा सकता है। ऐसे में वे आपके परिवार के लिए एक विशेष तरह का प्लान बनाने में मदद कर सकते हैं।
मेलिंडा गेट्स, चेयरपर्सन, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)