शनिवार सुबह कांग्रेस की सूची में सबसे बड़ा धमाका साबित हुआ, मानवेंद्र का झालरापाटन सीट से ऐलान। अब झालरापाटन राज्य की सबसे हॉट सीट बन गई है। यहां का राजनीतिक समीकरण मुस्लिम, ब्राह्मण, गुर्जर, राजपूत व एससी/एसटी जातियों पर निर्भर करता है।
वसुंधरा और मानवेंद्र दोनों राजपूत समाज से आते हैं। ऐसे में कांग्रेस ने मुस्लिम, गुर्जर, राजपूत और एससी/एसटी का क्लब बनाकर मानवेन्द्र को चुनाव में उतारा है। हालांकि, पिछले चुनावों के ट्रेंड को देखा जाए तो इस क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओं ने भी वसुंधरा का साथ दिया है। पिछली तीन चुनाव से वसुंधरा को इस सीट पर कांग्रेस हराना तो दूर टक्कर तक नहीं दे सकी है।
पिछले चुनाव में तो तुलनात्मक रूप से जीत का अंतर दोगुना हो गया। यहां से वसुंधरा के पहले चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें घेरने के लिए कांग्रेस के दिग्गज राजेश पायलट की पत्नी रमा को मैदान में उतारा। उन्हें 27 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त झेलनी पड़ी। इसके बाद स्थानीय नेता एवं पूर्व विधायक मोहनलाल राठौर को मौका दिया तो जीत का अंतर बढ़कर 32 हजार से ज्यादा का हो गया। पिछले चुनाव में मीनाक्षी चंद्रावत को मौका दिया तो वसुंधरा ने 60 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज की। अब मानवेंद्र सामने हैं।
हालांकि मानवेंद्र के पास पिता जसवंत सिंह की राजनीतिक विरासत है। जसवंत परिसीमन से पहले चित्तौडगढ़़ से सांसद रहे हैं। उस समय चित्तौड़ संसदीय क्षेत्र की सीमा झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र से सटी थी। मानवेंद्र इस समय राज्य में पिता की अनदेखी से नाराज बेटे का चेहरा बने हुए हैं।
मानवेंद्र ने अपने इस चेहरे को पहले सोशल मीडिया के जरिए चर्चित किया। फिर चुनाव में कूदे। उनकी राहुल गांधी से नजदीकी भी अहम है। उन्हें राहुल की पहल और मौजूदगी में ही कांग्रेस में शामिल किया गया। राहुल ने जब झालावाड़ में सभा की तो उन्हें मंच पर जगह भी दी गई। अब दोनों के बीच चुनावी घमासान होगा।
मानवेंद्र और वसुंधरा की तीन चुनौतियां बाहरी-दिग्गज नेता
जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह के सबसे बड़ी चुनौती बाहरी उम्मीदवारी के आरोपों से निपटने की रहेगी। इसके अलावा कांग्रेस संगठन बिखरा हुआ है और कई गुटों में बंटी है। चुनाव जीतने के लिए सबको एकजुट करना होगा।
दिन कम, काम ज्यादा
मतदान 7 दिसंबर को होगा। इतने कम दिनों में झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र के सभी इलाकों में जाना और मतदाताओं के साथ संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से संवाद कायम करना भी चुनौती से कम नहीं है।
मतदान 7 दिसंबर को होगा। इतने कम दिनों में झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र के सभी इलाकों में जाना और मतदाताओं के साथ संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से संवाद कायम करना भी चुनौती से कम नहीं है।
नाराजगी दूर करना
स्वाभाविक है कि जो नेता झालरापाटन से टिकट मांग रहे थे, उनमें से कुछ नाराज भी होंगे। उनकोमनाना मानवेंद्र के लिए टेढ़ी खीर है। उनसे सामंजस्य बनाने के साथ ही उनकी टीम को अपने साथ जोडना भी चुनौतिपूर्ण होगा।
स्वाभाविक है कि जो नेता झालरापाटन से टिकट मांग रहे थे, उनमें से कुछ नाराज भी होंगे। उनकोमनाना मानवेंद्र के लिए टेढ़ी खीर है। उनसे सामंजस्य बनाने के साथ ही उनकी टीम को अपने साथ जोडना भी चुनौतिपूर्ण होगा।
नाराजगी
झालावाड़ शहर का कब्रिस्तान विवाद राजे के लिए परेशानी रहा है। कुछ हिंदूवादी संगठन पूर्व में शहर बंद कराकर विरोध जता चुके हैं। ठंडे पड़ें इस मुद्दे को कुछ लोग चुनाव के दौरान इसे फिर से उठाने की कोशिश में हैं।
धीमी रफ्तार
विकास कार्य खूब हुआ लेकिन स्वीकृत कई बड़े प्रोजेक्ट की रफ्तर धीमी रही। झालावाड़ और झालरापाटन में काफी समय तक सडक़े खराब हैं। भाजपा हालिया चुनाव में इन दोनों नगर पालिकाओं में हार गई।
विकास कार्य खूब हुआ लेकिन स्वीकृत कई बड़े प्रोजेक्ट की रफ्तर धीमी रही। झालावाड़ और झालरापाटन में काफी समय तक सडक़े खराब हैं। भाजपा हालिया चुनाव में इन दोनों नगर पालिकाओं में हार गई।
राजनीतिक विरासती चेहरा
मानवेंद्र सिंह भाजपा के दिग्गज नेता जसवंत सिंह के बेटे हैं। वह अपने पिता जसवंत की उपेक्षा का भावनात्मक मुद्दा उठाकर चुनाव में उतरे हैं। इससे निपटना भी पार्टी के लिए चुनौतिपूर्ण होगा।
मानवेंद्र सिंह भाजपा के दिग्गज नेता जसवंत सिंह के बेटे हैं। वह अपने पिता जसवंत की उपेक्षा का भावनात्मक मुद्दा उठाकर चुनाव में उतरे हैं। इससे निपटना भी पार्टी के लिए चुनौतिपूर्ण होगा।
झालरापाटन का जातीय गणित
मुस्लिम————35,000
ब्राह्मण———— 28,000
दांगी————22,000
गुर्जर————23,000
राजपूत————17,000
एससी————35,000
एसटी————10,000
धाकड़————18,000
सौंधिया————18,000
पाटीदार————22,000
वैश्य————15,000
अन्य———— 47,000