Narendra Modi लहर के चलते 2013 में भाजपा ने अधिकांश विधानसभा सीटों पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बड़े अंतर से जीत के बाद पहली बार चुने गए विधायकों ने क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं दिया। बल्कि कुछ हद तक पार्टी कार्यकर्ताओं को नाराज तक कर दिया। सर्वे समेत बड़े नेताओं के दौरों में यह स्थिति सामने आई। इसके बाद पार्टी को जिन विधायकों का जनाधार खिसकता नजर आया, उन पर दोबारा चुनावी दावं खेलने से पार्टी ने किनारा कर लिया।
बड़ी जीत फिर भी घर बिठाया ( rajasthan election 2018)
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गृह निर्वाचन जिले की डग सीट से 2013 में आर.सी. सुनारीवाल ने 50 हजार से अधिक वोटों से बड़ी जीत दर्ज की थी। महज पांच साल में सुनारीवाल की कार्यशैली से स्थानीय कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी थी। यही वजह है कि खुद मुख्यमंत्री को उनके टिकट पर सार्वजनिक टिप्पणी करनी पड़ी। अंत मेंं उन्हें घर बिठा दिया गया। इसी तरह बांसवाड़ा से विधायक धनसिंह रावत वैसे तो राजनीति के पुराने खिलाड़ी है, वह सांसद भी रह चुके हैं। विधानसभा की दहलीज पर 2013 में पहली बार पहुंचे। उन्हें 30 हजार से अधिक वोटों की भारी भरकम जीत मिली, लेकिन खुद के बड़बोलेपन से टिकट कटवा दिया। वहीं पोकरण से शैतान सिंह 34 हजार से अधिक वोटों से जीतकर विधायक बने, लेकिन विवादों से उनका नाता जुड़ा रहा। इसकी वजह से वह चुनावी पिच पर उतरने से पहले ही बोल्ड हो गए। सांगरिया से कृष्ण कड़वा भी दूसरी बार टिकट लेने में विफल रहे हैं। भाजपा ने दूसरी सूची में भी महिला विधायकों को पत्ता साफ करने का काम किया है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गृह निर्वाचन जिले की डग सीट से 2013 में आर.सी. सुनारीवाल ने 50 हजार से अधिक वोटों से बड़ी जीत दर्ज की थी। महज पांच साल में सुनारीवाल की कार्यशैली से स्थानीय कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी थी। यही वजह है कि खुद मुख्यमंत्री को उनके टिकट पर सार्वजनिक टिप्पणी करनी पड़ी। अंत मेंं उन्हें घर बिठा दिया गया। इसी तरह बांसवाड़ा से विधायक धनसिंह रावत वैसे तो राजनीति के पुराने खिलाड़ी है, वह सांसद भी रह चुके हैं। विधानसभा की दहलीज पर 2013 में पहली बार पहुंचे। उन्हें 30 हजार से अधिक वोटों की भारी भरकम जीत मिली, लेकिन खुद के बड़बोलेपन से टिकट कटवा दिया। वहीं पोकरण से शैतान सिंह 34 हजार से अधिक वोटों से जीतकर विधायक बने, लेकिन विवादों से उनका नाता जुड़ा रहा। इसकी वजह से वह चुनावी पिच पर उतरने से पहले ही बोल्ड हो गए। सांगरिया से कृष्ण कड़वा भी दूसरी बार टिकट लेने में विफल रहे हैं। भाजपा ने दूसरी सूची में भी महिला विधायकों को पत्ता साफ करने का काम किया है।
प्रभारी मंत्री का ही साफ हो गया टिकट
प्रदेश के दो जिलों में ऐसा भी हुआ है कि जहां के प्रभारी मंत्रियों के टिकट तो कट गए, लेकिन वहां के आठ वर्तमान विधायकों को भाजपा ने फिर से मौका दिया है।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बाबूलाल वर्मा का केशोरायपाटन से टिकट कट गया है। वह बारां जिले के प्रभारी मंत्री थे। वहीं बारां जिले के अंता से विधायक प्रभुलाल सैनी, छबड़ा से प्रताप सिंह सिंघवी और किशनगंज से ललित मीणा पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया है। मंत्री राजकुमार रिणवा को पार्टी ने रतनगढ़ से फिर से चुनाव लडऩे का मौका नहीं दिया है। वह सीकर जिले के प्रभारी मंत्री थे, जहां पर आठ में से अब तक छह टिकट बांटे गए हैं। इनमें पांच विधायकों के टिकट बरकरार रखे हैं। इनमें धोंद से गोरधन, खंडेला से बंशीधर खंडेला, नीम का थाना से प्रेम सिंह बाजौर, सीकर से रतनलाल जलधारी और श्रीमाधोपुर से झाबरसिंह खर्रा शामिल है।
प्रदेश के दो जिलों में ऐसा भी हुआ है कि जहां के प्रभारी मंत्रियों के टिकट तो कट गए, लेकिन वहां के आठ वर्तमान विधायकों को भाजपा ने फिर से मौका दिया है।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बाबूलाल वर्मा का केशोरायपाटन से टिकट कट गया है। वह बारां जिले के प्रभारी मंत्री थे। वहीं बारां जिले के अंता से विधायक प्रभुलाल सैनी, छबड़ा से प्रताप सिंह सिंघवी और किशनगंज से ललित मीणा पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया है। मंत्री राजकुमार रिणवा को पार्टी ने रतनगढ़ से फिर से चुनाव लडऩे का मौका नहीं दिया है। वह सीकर जिले के प्रभारी मंत्री थे, जहां पर आठ में से अब तक छह टिकट बांटे गए हैं। इनमें पांच विधायकों के टिकट बरकरार रखे हैं। इनमें धोंद से गोरधन, खंडेला से बंशीधर खंडेला, नीम का थाना से प्रेम सिंह बाजौर, सीकर से रतनलाल जलधारी और श्रीमाधोपुर से झाबरसिंह खर्रा शामिल है।