संगठन में बदलाव का यह बड़ा कदम उठाया है संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर ( Chandrasekhar ) ने। सूत्र बताते हैं कि पार्टी का मानना है कि विधायक-सांसदों के दखल के चलते संगठन लगातार कमजोर होता जा रहा है। इस स्थिति से निपटने का यही एक रास्ता है कि विधायक और सांसद की सिफारिश से संगठन में नियुक्ति देने के बजाय उसी व्यक्ति को संगठन में जगह दी जाए, जो पार्टी के लिए काम करे ना कि किसी नेता के लिए।
पिछले दिनों जयपुर में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति ( BJP Rajasthan State Working Committee ) की बैठक में भी यह मुद्दा हावी रहा था। संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा था कि विधायक किसी की नियुक्ति की सिफारिश करने से बचें, संगठन के कार्य में हस्तक्षेप न करें। संगठन के पदाधिकारियों को भी निर्देश दिए गए हैं कि किसी को खुश करने के लिए किसी को काम नहीं दें, जो काम करता है, उसी को काम सौंपे।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बोले- सिर्फ राहुल गांधी ही कर सकते हैं कांग्रेस का नेतृत्व दस साल में बदल गया पार्टी का ढांचा
भाजपा में पहले सत्ता-संगठन अलग-अलग रहे, लेकिन15 साल से संगठन में वो ही लोग ज्यादा आ रहे हैं, जिनकी सिफारिश विधायक या सांसद कर रहे थे। असर यह हुआ कि विधायक और सांसद जिस कार्यक्रम के लिए कहते, वह कार्यक्रम तो हो जाता, लेकिन संगठन से जुड़े अन्य कार्यक्रम करने में भाजपा को परेशानी आने लगी।
भाजपा में पहले सत्ता-संगठन अलग-अलग रहे, लेकिन15 साल से संगठन में वो ही लोग ज्यादा आ रहे हैं, जिनकी सिफारिश विधायक या सांसद कर रहे थे। असर यह हुआ कि विधायक और सांसद जिस कार्यक्रम के लिए कहते, वह कार्यक्रम तो हो जाता, लेकिन संगठन से जुड़े अन्य कार्यक्रम करने में भाजपा को परेशानी आने लगी।
जब पार्टी सत्ता में रहती, तो संगठन के मूल कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस करता और विधायक के नजदीक के कार्यकर्ताओं के कहने पर काम होते। यही नहीं, जब चुनाव आते हैं और पदाधिकारियों से रायशुमारी होती हैै तो 90 प्रतिशत एक ही नेता का नाम लिखते हैं, जिससे नए चेहरों के नाम निकल कर आ ही नहीं पाते। इन सब की वजह से संगठन का मूल ढांचा कमजोर होने लगा है, जिससे पार्टी के बड़े नेता चिंता महसूस करने लगे हैं।
विधायकों में भी बढऩे लगी है नाराजगी
भाजपा के इस संदेश से अब विधायकों में भी नाराजगी बढऩे लगी है। विधायकों का कहना है कि यदि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं होगा तो कैसे काम होंगे। किसी अन्य के हाथ में संगठन देने से वह कुछ ही दिनों में खुद भी विधायक बनने का सपना देखने लगता है और खुद की टीम खड़ी कर विधायकों के खिलाफ काम करना शुरू कर देते हैं। इसी वजह से बीच में संगठन में नियुक्तियां विधायकों से पूछ कर हो रही थी। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। यदि विधायक के विधानसभा क्षेत्र में संगठन में नियुक्ति हो रही है तो बिना पूछे करने से सत्ता और संगठन में खाई और बढ़ जाएगी।
भाजपा के इस संदेश से अब विधायकों में भी नाराजगी बढऩे लगी है। विधायकों का कहना है कि यदि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं होगा तो कैसे काम होंगे। किसी अन्य के हाथ में संगठन देने से वह कुछ ही दिनों में खुद भी विधायक बनने का सपना देखने लगता है और खुद की टीम खड़ी कर विधायकों के खिलाफ काम करना शुरू कर देते हैं। इसी वजह से बीच में संगठन में नियुक्तियां विधायकों से पूछ कर हो रही थी। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। यदि विधायक के विधानसभा क्षेत्र में संगठन में नियुक्ति हो रही है तो बिना पूछे करने से सत्ता और संगठन में खाई और बढ़ जाएगी।
विधायक पर पड़ता है सीधा असर
विधानसभा स्तर पर संगठन में होने वाली नियुक्तियों का सीधा असर विधायक पर पड़ता है। क्योंकि संगठन के स्थानीय पदाधिकारी ही विधानसभा चुनाव में सीधे काम करते हैं। ऐसे में हर विधायक चाहता है कि विधानसभा स्तर पर संगठन उन्हीं के हिसाब से चले। सांसद पर विधानसभा स्तर के संगठन का असर कम रहता है, उन पर जिला स्तर के संगठन का ज्यादा असर रहता है।
विधानसभा स्तर पर संगठन में होने वाली नियुक्तियों का सीधा असर विधायक पर पड़ता है। क्योंकि संगठन के स्थानीय पदाधिकारी ही विधानसभा चुनाव में सीधे काम करते हैं। ऐसे में हर विधायक चाहता है कि विधानसभा स्तर पर संगठन उन्हीं के हिसाब से चले। सांसद पर विधानसभा स्तर के संगठन का असर कम रहता है, उन पर जिला स्तर के संगठन का ज्यादा असर रहता है।