लॉन में एक दावेदार के समर्थक बतिया रहे हैं। एक कह रहा है, कई दिन से कोशिश कर रहे हैं, भाईसाहब को प्रदेशाध्यक्ष मिल नहीं पा रहे हैं। एक बार भाईसाहब की उनसे मुलाकात हो जाए तो बात कुछ आगे बढ़े। दूसरा बोला, भाई चुनावी बिसात है, हर कोई अपने मोहरे फिट करने में लगा है। लगता है अपने भाईसाहब इस बार भी मुंह ताकते रह जाएंगे।
मुख्य द्वार पर नारेबाजी का शोर उठा है। राजस्थान विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्रनेता के समर्थक टिकट की मांग उठा रहे हैं। बाहर डेयरी बूथ पर कुछ युवा चाय पर चर्चा कर रहे हैं। एक ने कहा, यही वक्त है, युवाओं को खुद के लिए खड़े होना होगा। भाषणों में तो दल और नेता युवाओं के गुण गाते हैं लेकिन टिकट की बारी आते ही सब पुराने चावलों पर भरोसा करने लगते हैं। युवाओं को मौका ही नहीं दोगे तो वे खुद को साबित कैसे करेंगे?
कार्यकर्ताओं का समूह चर्चा कर रहा है। एक ने बुलंद आवाज में साथियों से कहा, पार्टी ने 8 उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी कर दी है। इसके बाद सभी सूची में शामिल नामों पर सुगबुगाहट करने लगते हैं। इतने में एक गुस्से से बोला, यह कहां का न्याय है? कल आए व्यक्ति को आज टिकट दे दिया? पैराशूट प्रत्याशी मलाई खाते रहेंगे, जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता कहां जाएंगे? मौकापरस्त आगे आ रहे हैं। जो पार्टी के लिए काम करते हैं, उनका क्या?
लॉन में कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के बीच एक नौजवान आकर बैठता है। उन्हें बताता है कि मैं अलवर से हूं, माहौल देखने आया हूं। तभी एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने सीख दी, माहौल देखकर ही चले जाओ, कार्यकर्ता के रूप में जुडऩे का ख्याल भी दिमाग में मत लाना। कुछ हासिल नहीं होने वाला। हमें देखो, कोई 17 साल से जुड़ा हुआ है, कोई 25 साल से। मिलता कुछ नहीं है। वो तो शुक्र है कि अच्छी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए हैं। अच्छी-खासी पेंशन मिलती है। वरना घरवाले यहां बैठने देते? पूरे हिन्दुस्तान में मिलावट हो रही है। राजनीति में भी मिलावट हो रही है। एक पार्टी से टिकट न मिले तो दूसरी में शामिल हो जाते हैं। सब टिकट का खेल है। जनता का भला कोई नहीं चाहता। तुम तो युवा हो, अच्छा लक्ष्य चुनो, रोजगार पर ध्यान दो। यहां तो साठ साल के हो जाओ तब आना।