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जयपुर में खूब बरसा पानी, लेकिन नहीं आया काम, प्यासी रह गई जमीन, 90 फीसदी बह गया सीवरेज में

locationजयपुरPublished: Aug 16, 2019 09:10:49 pm

Submitted by:

Bhavnesh Gupta

-परेशान करने वाली हकीकत-दिखावा बने स्टोर्म रेनवाटर और रूफ टॉप हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर

Rain WAter Harvesting

जयपुर में खूब बरसा पानी, लेकिन नहीं आया काम, प्यासी रह गई जमीन, 90 फीसदी बह गया सीवरेज में

भवनेश गुप्ता . जयपुर। जयपुर में पानी तो खूब बरसा, लेकिन सरकारी अमले और आमजन की लापरवाही के चलते इसे सहेजा नहीं जा सका। सड़क किनारे लाखों रुपए खर्च करके बनाए गए अधिकतर स्टोर्म रेनवाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (Storm Water Harvesting System) नाकाफी साबित हुए तो मकान की छत का पानी सीधे नालों-सीवरेज लाइन में बहा दिया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक बारिश का 10 प्रतिशत पानी बह गया, जबकि दस फीसदी में भी भूजल रिचार्ज के अलावा तालाब में एकत्रित हुआ है। जबकि, केवल एक दिन की बारिश के पानी को ही सहेज लिया जाए तो एक साल तक का पेयजल उपलब्ध हो सकता है। परेशान करने वाले हालात यह है कि जयपुर अतिदोहित क्षेत्र में शामिल है। यहां से 13 में से 12 ब्लॉक अतिदोहित नोटिफाइड हैं और 1 क्रिटिकल स्थिति में है। लगभग पूरा जयपुर ही डार्क जोन में है, इसके बावजूद पानी को सहेजने में बहुत ज्यादा रूचि नहीं दिखाई।

1. स्टोर्म रेनवाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर : 1 स्ट्रक्चर ब्लॉक, 1 लाख लीटर पानी व्यर्थ
एक स्टोर्म रेनवाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (सड़क किनारे) के निर्माण पर 3.75 से 4.30 लाख रुपए तक खर्चा आता है। विशेषज्ञों के मुताबिक मानूसन में औसतन 300—350 मिलीमीटर बारिश होती है तो एक स्ट्रक्चर के जरिए 15 से 20 लाख लीटर पानी रिचार्ज होना चाहिए। भारी बारिश की स्थिति में एक दिन में यह आंकडा 70 हजार से 1 लाख लीटर तक हो सकता है। ऐसे में स्ट्रक्चरों के ब्लॉक होने की स्थिति में लाखों लीटर पानी नालों में बह गया।

2. रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर : 1 पर भी जुर्माना नहीं
300 वर्गमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल के भूखण्ड पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाना अनिवार्य है। ऐसे लाखों भवन निर्मित हैं, लेकिन हार्वेस्टिंग सिस्टम 5 से 8 फीसदी भवनों में ही बनाए गए। इसमें भी कई दिखावा हैं। पिछले 5 वर्ष में नियमों को ताक पर रखने वाले एक भी निर्माणकर्ता से जुर्माना नहीं वसूला गया, केवल नोटिस देकर जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली गई। यही कारण है कि मानसून में करोड़ों लीटर पानी नालों में व्यर्थ बहाया जा रहा है।

जहां अफसर फेल, वहां एनजीटी का चला डंडा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं बनाने पर शिकंजा कसा था। एनजीटी के निर्देश पर कई अस्पताल, होटल, मॉल्स पर बड़ा जुर्माना लगाया गया। यहां तक एेसी कई इमारतों को सील करने के भी हिदायत दे दी गई, लेकिन जयपुर में नौकरशाह नकेल नहीं कस पाए।

परेशानी करने वाली स्थिति : जयपुर का भूजल स्तर…
-1.58 मीटर (न्यूनतम) भू-सतह से नीचे
-91.28 मीटर (अधिकतम) भू-सतह से नीचे
-0.89 प्रतिशत में 2 मीटर तक गहराई में
-0 प्रतिशत 2 से 5 मीटर के बीच
-11.61 प्रतिशत 5 से 10 मीटर के बीच
-21.43 प्रतिशत 10 से 20 मीटर के बीच
-20.54 प्रतिशत 20 से 40 मीटर के बीच
-45.54 प्रतिशत 40 मीटर से अधिक
(जनवरी, 2019 तक का आकलन, जिसमें मीटर भूसतह से नीचे के आधार पर है। हालांकि, मानसून के बाद इसमें बदलाव होता रहा है लेकिन पानी का सदुपयोग नहीं होने के कारण बारिश से ठीक पहले वापिस यही परेशानी करने वाली स्थिति सामने आती रही है)

-भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार तेजी से भूजल स्तर गिरा है। जल संरक्षण के इतनी बड़ी मुहिम के बावजूद बारिश का 90 फीसदी पानी बह गया। अपेक्षित रिचार्ज स्ट्रक्चर नहीं होने और जो हैं उनका रखरखाव नहीं होने यह हालात हैं। यह अलार्मिंग स्थिति हैं। जबकि, एक दिन के पानी को सहेजकर ही पेयजल का एक साल तक पानी मिल सकता है। आमजन को या सरकारी अफसर, हम सभी को यह समझना होगा। अब मौका है जो पानी एकत्रित हुआ है उसका तरीके से उपयोग करें। -डॉ. एस.के जैन, भूजल विशेषज्ञ
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