scriptEXCLUSIVE: ‘विपक्ष को ज्यादा समय देता हूं ताकि वह सरकार को आईना दिखा सके’: बिरला | Om Birla Exclusive Interview with Patrika | Patrika News

EXCLUSIVE: ‘विपक्ष को ज्यादा समय देता हूं ताकि वह सरकार को आईना दिखा सके’: बिरला

locationजयपुरPublished: Aug 23, 2019 10:07:42 am

Submitted by:

Nakul Devarshi

बिरला का मानना है कि लोकतंत्र की मजबूती प्रभावी विपक्ष से है। वह असहमति को लोकतंत्र का ही हिस्सा मानते हैं। लेकिन यह भी कहते हैं कि जनता सांसदों को इसलिए नहीं भेजती कि वह सदन में नारेबाजी करें। अब महज हंगामे के लिए सदन का काम नहीं रुकेगा। लोकसभा के मौजूदा परिदृश्य और भविष्य की योजनाओं को लेकर पत्रिका ने बिरला से खास बातचीत की-

om birla
मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली।

लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला लोकतांत्रिक मूल्यों से सदन को चलाना चाहते हैं, जहां सभी की आवाज सुनी जाए। लेकिन बात जब अनुशासन की हो, बिरला की सख्ती भी उनकी एक खासियत है। बिरला का मानना है कि लोकतंत्र की मजबूती प्रभावी विपक्ष से है। वह असहमति को लोकतंत्र का ही हिस्सा मानते हैं। लेकिन यह भी कहते हैं कि जनता सांसदों को इसलिए नहीं भेजती कि वह सदन में नारेबाजी करें। अब महज हंगामे के लिए सदन का काम नहीं रुकेगा। लोकसभा के मौजूदा परिदृश्य और भविष्य की योजनाओं को लेकर पत्रिका ने बिरला से खास बातचीत की-
संसद के काम-काज पर
असहमति लोकतंत्र का हिस्सा है। सदन के अंदर वाद-विवाद और तर्क बहस तो होनी ही चाहिए लेकिन देशहित का सवाल आए तो सर्वसम्मति और बिना अवरोध के काम हो। संसद में लग रहे देश के एक-एक पैसे की भरपाई हो।
पहली बार चुन कर आए सांसद के लिए
मैं पहली बार 2014 में चुन कर आया था। उससे पहले मैं विधायक था। तभी मुझे लगा कि लोकसभा तो 542 सदस्यों का बड़ा सदन है। यहां तो नए सदस्यों को मौका मिलने में छह महीने से दो साल तक लग जाते हैं। इस बार मैंने कोशिश की है कि उन सभी को पहले सत्र में ही मौका मिले।
लोकतंत्र में विपक्ष
मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत और प्रभावी विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। कम संख्या है तो समय ज्यादा देने की कोशिश करता हूं ताकि वे सरकार को आईना दिखा सके।

बिल को स्थायी समितियों को नहीं भेजे जाने पर
कुछ स्थायी समितियां गठित नहीं हुई हैं। जबकि कई विधेयक पहले से ही समितियों से पारित हो चुके थे। इसलिए मैंने कोशिश की है कि स्थायी समिति नहीं है तो इस पर अधिक से अधिक बहस और चर्चा संसद में हो। सदन तो स्थायी समिति से बड़ी इकाई है। यहां सदस्य सरकार से जो और जितने सवाल पूछना चाहें पूछें। आखिर 130 करोड़ लोगों के लिए कानून बनना है तो विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। अब जल्दी ही स्थायी समिति का गठन हो जाएगा।
विपक्ष के आरोपों पर
सदन को चलाने में विपक्ष को भरोसे में नहीं लेने की बात बिल्कुल गलत है। मैं कार्य मंत्रणा समिति में भी सभी से चर्चा करता हूं और सदन में भी।

संसद में हंगामा
यह अब नहीं होगा कि हंगामे के लिए काम रोक दिया जाए। लोग सांसदों को इसलिए नहीं भेजते कि वे यहां नारेबाजी करें। यह लोकतंत्र का हिस्सा नहीं है। अपनी बात प्रभावी तरीके से रखिए। इलाके की समस्याएं रखिए। कानून बनाने सकारात्मक सहयोग कीजिए।
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसद
जब तक सजा नहीं मिल जाए, किसी को अपराधी नहीं कहा सकता।

नया भवन
मौजूदा संसद भवन को 97 साल हो गए। आधुनिक जरूरतों के मुताबिक नए भवन के निर्माण या मौजूदा भवन के आधुनिकीकरण पर काम शुरू कर दिया गया है। सभी संबंधित लोगों से सलाह ली जा रही है।
हिंदी को बढ़ावा देने पर
हिंदी देश की सबसे ज्यादा उपयोग वाली भाषा है, इसलिए संसद का काम-काज भी इसमें हो। साथ ही आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद भी उपलब्ध हो। भारतीय संसद के अंदर देश की भाषा में कानून पारित होने चाहिए।
बेहतर बहस के लिए
माननीय सदस्यों को सुबह नौ बजे से 10.30 बजे तक विशेषज्ञों की ओर से जानकारी देने की व्यवस्था की जा रही है। क्योंकि हर सांसद हर विषय का जानकार नहीं हो सकता। वह 10-20 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी समस्याओं से जूझता है।
स्वयं के निर्वाचन क्षेत्र की अपेक्षाएं
जिस जनता ने पहले विधायक और फिर सांसद के रूप में भेजा है, उसके प्रति निश्चित तौर पर मेरी जवाबदेही है। कोशिश करूंगा कि उनको पर्याप्त नतीजे दे सकूं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो