सोसायटी ऑफ गेस्ट्रोइंटेस्टाइलन एंडोस्कोपी ऑफ इंडिया (एसजीईआई) व एस.आर. कल्ला हॉस्पिटल की ओर से यहां शनिवार से शुरू हुई नेशनल एडवांस एंडोस्कोपी वर्कशॉप में यह बात सामने आई। देशभर से आए गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्टों ने ऐसी ही इलाज की नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी। कॉन्फ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ. मुकेश कल्ला ने बताया कि वर्कशॉप के पहले दिन शनिवार को अत्याधुनिक ईएसजी, पोयम और ईयूएस-ईआरसीपी तकनीक से पेट की सर्जरी करने के बारे में जानकारी दी गई। इसके लिए एक्सर्पट्स ने सर्जरी की जिसका लाइव टेलीकास्ट आयोजन स्थल में किया गया। एसजीईआई के राजस्थान चेप्टर के सचिव डॉ. संदीप निझावन ने बताया कि राजस्थान में पहली बार इस तरह की वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें अत्याधुनिक तकनीकों की जानकारियां साझा की जा रही हैं।
इंदौर के डॉ. मोहित भंडारी ने बताया कि मोटापे के साथ मरीजों को डायबिटीज, बीपी, जोड़ों में दर्द और खर्राटे की भी शिकायत होती है। जिनका बीएमआई 30 से ज्यादा होता है, उनके लिए मोटापा कम करना बेहद जरूरी होता है। अभी तक लाइफ स्टाइल में सुधार कर या बैरियाट्रिक सर्जरी से पेट को कम किया जाता था। इस सर्जरी के बाद मरीज को उम्रभर विटामिन के इंजेक्शन लेने की जरूरत पड़ती थी, लेकिन नई एंडोस्कोपी स्लीव गेस्ट्रोप्लास्टी (ईएसजी) से इसी तरह का काम बिना किसी चीर-फाड़ के किया जाता है। इसके लिए मरीज के पेट में दूरबीन से टांके लगाकर पेट का आकार छोटा कर दिया जाता है। प्रक्रिया होने के एक दिन बाद ही अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिया जाता है। इससे मरीज अपना 18 से 20 प्रतिशत वजन कम कर सकता है।
पेट में बैलून डालकर कम होगी भराव क्षमता -:
हैदराबाद के डॉ. संदीप लखटाकिया ने इंट्रागैस्ट्रिक बैलून तकनीक के बारे में बताया कि इस तकनीक में बिना किसी सर्जरी के मरीज के पेट में बैलून डालकर उसके पेट की भराव क्षमता कम की जाती है और प्रक्रिया पूरी करने केतुरंत बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी भी मिल जाती है। यह बैलून करीब 9 से 12 माह मरीज के पेट में रहता है और इससे करीब 12 प्रतिशत वजन कम होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पेट से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती और मरीज अपनी जीवनचर्या को संतुलित रख वजन को नियंत्रित रख सकता है।