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महात्मा गांधी ने दी पनाह, एक फरमान से हुए बेघर

locationजयपुरPublished: Aug 22, 2019 04:07:33 pm

Submitted by:

Amit Baijnath

महात्मा गांधी ने गुजरात के साबरमती आश्रम में जिस परिवार को सालों पहले बसाया था, उसे अब आश्रम छोड़ने को कहा गया है। परिवार ने मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया है। इससे पहले निचली अदालत ने साबरमती आश्रम गोशाला ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए परिवार को परिसर छोड़ने का आदेश दिया था।

महात्मा गांधी ने दी पनाह, एक फरमान से हुए बेघर

महात्मा गांधी ने दी पनाह, एक फरमान से हुए बेघर

अहमदाबाद। महात्मा गांधी ने गुजरात के साबरमती आश्रम में जिस परिवार को सालों पहले बसाया था, उसे अब आश्रम छोड़ने को कहा गया है। परिवार ने मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया है। इससे पहले निचली अदालत ने साबरमती आश्रम गोशाला ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए परिवार को परिसर छोड़ने का आदेश दिया था। सोनू थोसर के दादा बाबूभाई थोसर को महात्मा गांधी ने अन्य कारीगरों के साथ आश्रम के कर्मचारी के रूप में पनाह दी थी। वह लेदर की चप्पलें बनाते थे। इस मामले में सिविल अदालत ने गोशाला ट्रस्ट की याचिका स्वीकार कर ली थी, जिसके बाद सोनू ने हाईकोर्ट का रुख किया है। 1998 में ट्रस्ट ने जमीन पर दावा करते हुए मुकदमा दर्ज किया था। ट्रस्ट ने अपने बयान में कहा था कि थोसर के वंशजों का उस जमीन पर कोई हक नहीं है।
महात्मा गांधी ने साबरमती और वर्धा स्थित अपने आश्रमों में टैनरी सेक्शन की स्थापना की थी। उन्होंने ग्रामीण इलाकों खासकर धोलका के आस-पास के इलाके से कुछ कारीगरों को साबरमती आश्रम में बसाया था। वे सिर्फ मरे हुए मवेशियों की खाल से सैंडल बनाते थे और प्रोडक्ट को अंहिसा चप्पल नाम दिया गया था। वर्तमान में थोसर समेत पांच परिवार आश्रम के परिसर में रह रहे हैं। फरवरी में सिविल कोर्ट ने ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाया था और थोसर परिवार को पजेशन सौंपने का आदेश दिया था। थोसर परिवार में बाबू थोसर की बहू और पोता सोनू रहते हैं। परिवार के पास यह दिखाने के कागज नहीं है कि गांधी द्वारा उन्हें आश्रम में बसाया गया था और न ही उनके पास ट्रस्ट को किराया देने का कोई सबूत है। दूसरी ओर ट्रस्ट ने कोर्ट में बताया कि बाबूलाल थोसर को गांधी ने कई कारीगरों के साथ यहां बसाया था। वर्कशॉप 1969 में बंद हो गई थी और सभी मजदूर कार्यमुक्त हो गए। थोसर के परिवार को आश्रम में रहने का अधिकार नहीं है।

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